मचला जाता है
उनसे मिलने को
प्यार का स्वर गाता है
सूरज ने फैली तपिश को
छिपा लिया है
चाँदनी ने गुलाबी सा मौसम किया है
चाँद तुम्हारे शबनम से
शर्मा जाता है
ऐसे मे कुछ रेशम रेशम
मन होता है
हवा से हल्का
छूयी-मुयी सा
तन होता है
ऐसे मे कुछ आते हैं
जज़्बात नये
मिल जाएँ
इस निर्झर मन को
सौगात नये
ऐसे मे बस रेशम सा
चमन होता है
बया हो जाएँ
सपनों से संचित जो अंतर
रेशम सी फिसलन का थोड़ा
मन करता है
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-कुश्वंश