महेश कुशवंश

30 जून 2014

मर्यादा पुरुषोत्तम


राम
तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो
तुम्हारा अवतार हुआ
मानवीय मूल्यों की रक्षा करने
और इस प्रक्रिया में
तुमने सिर्फ खोया
बचपन खोया ऋषि मुनियों का यज्ञ बचाने
ऋषियों की इच्छा पर धनुष तोड़ा
सीता को स्वयंवर में जीता
परशुराम से सुनी जली कटी
मगर रहे चुप
मर्यादा जो निभानी थी
राज्याभिषेक से पहले मिला बनवास
पिता का वियोग
सीता का विरह
रावण का अहंकार मिटाने
सिखाने उसे मर्यादा
चौदह वर्ष छानी ख़ाक जंगल जंगल
वापस लौटे
फिर मर्यादा आड़े आयी
सीता की अग्नि परिक्षा
बहते रहे तुम्हारी आँखों से मर्यादा के आंशू
सीता को फिर भी न रख  सके साथ
लव कुश का  झोपड़ियों में जन्म
सीता की साथी बनी जंगल की लकडिया
तुम्हे लडनी पडी लड़ाई अपने ही पुत्रों से
अस्वमेध यज्ञ में
सीता से आखिरी वियोग
भूमि में समाते देखते रहे तुम
भगवान् होकर भी मर्यादा में बंधे रहे तुम
कितने आंशू, कितनी पीड़ा
किसे समझाते तुम
तुम्हें तो निभानी थी मर्यादा
सह कर सारी पीडाएं
राम
तुम ही नहीं
तुम्हारे आस पास रहे लोग भी सहते रहे पीडाए
लक्ष्मण, उर्मिला, कौशल्या , भरत , शत्रुघ्न
और तुम्हारे पिता चक्रवर्ती राजा दशरथ भी
भेंट चढ़ गए
तुम्हारी मर्यादा के
तुम्हारी मर्यादापुरुशोतमत्व के
और तुम्हारी अर्धांगिनी सीता भी
कहाँ अछूती रही
राम
शायद तुम्हें यही कर्त्तव्य निभाना था
अवतार लेकर
निरे मानव को यही समझाना था ......

कुश्वंश

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. शायद तुम्हें यही कर्त्तव्य निभाना था
    अवतार लेकर
    निरे मानव को यही समझाना था ......
    बहुत सही।
    …… सच तो यही है की जो भी धरा पर जन्मा उसे सुख दुःख झेलना ही है । सर्वथा सुखी-दुखी नहीं कोई नहीं ।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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