महेश कुशवंश

24 जून 2014

कोई सपना

कौन जीता है यहाँ
किसी को सहारा देकर
रस्ता बदल देते है
किसी को किनारा देकर
खरा है कौन है
जांनता है कहाँ कोई
मानवता ना जाने किस ओर
कहाँ जाकर सोयी
कौन है जो जगाले
जमीर सोया अपना
पूंछ्ले किसी के भी
घर का कोई सपना
हम तो बेकार मे
सम्बंध बनाते है उंनसे
सोते अरमान  अंजान
जगाते हैं उंनसे
भूल जाओ अगर कोयी भी
अपना ना मिले
दिन तो दिन है
रातो मे भी सपना ना पले
हम तो हाँथो मे
तक्दीर लिये  फिरते है
जेबो मे अपनी ही
तस्वीर लिये फिरते हैं
गम नही गर कोई
आसमा  ना मिले
सोचेंगे नहीं गर
कोई गरीबा ना मिले

-
कुशवंश


 

2 टिप्‍पणियां:

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में