महेश कुशवंश

12 मार्च 2014

होली मे हुड़दंग


टूट गए जब
सारे दाँत
सूख गई
अंदर तक आंत
ऐसे मे दिल गया उछल
पता चला होली है कल
किसको तिरछे नयन निहारूँ
प्यार भरा
कंकड़ कब मारूँ
भौजी के भी दाँत नही
साली की भी आंत नही
मधुबाला भी गई निकल
क्या करूँ होली है कल ?
हाय ! पड़ोसन चाचा बाँचे
दिल मे खिड़की  भरे कुलांचे
मगर कहीं भी
पकी न दाल
बुरा हुआ  होली मे हाल
अब तो एक ही
रास्ता बाकी
निकलेगी  जब होली झांकी
मचाऊंगा जमकर हुड़दंग
पीलूगा ठंडाई,  भंग
भेस बदल कर ,
राधा बनकर
ज्वाइन करूंगा , महिला टोली
ऐसे खूब मानेगी  होली......

कुशवंश




3 टिप्‍पणियां:

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-कुश्वंश

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