मेरे शहर
मुझे बहुत याद आते हो तुम
दूर तक सड़कों पर
इक्का दुक्का वाहन
मै साइकिल पर
कोसता फिरता था
कभी अपने को
कभी भगवान को
काश ऐशी गाड़ियों का सुख
मेरे नसीब मे भी होता
दुकानों मे पलक पावड़े बिछाए
दुकानदार
ग्राहक को देखते ही
आवभगत मे जुट जाता था
सामान न खरीदने पर भी
फिर आइएगा की संस्कृति निभाता था
पड़ोसी की नई कार पर कई दिनों
मिठाइयों का दौर चलता था
इसके उसके यहा
रोज दावतों का ठौर लगता था
मानो गाड़ी पूरे मोहल्ले की आई हो
बेटी बेटियों की शादी बोझ नही होती थी
मोहल्ले भर का जश्न होता था
दामाद सारे मोहल्ले का था
बहू हर घर की लक्ष्मी थी
चौराहों पर मै आगे , तुमसे आगे का
शोर नही होता था
क्रासिंग पर ट्रेन जाने का इंतज़ार
धैर्य से करते थे लोग
त्योहारों पर एक दूसरे की खुशियों मे शरीक होने का
शगल नही
मन होता था
दूरदर्शन पर
पूरा मोहल्ला देखता था चित्रहार
और ठहाके लगाता था
गुप्ता जी पकौड़िया खिला कर
गर्व से मुसकुराते थे
चौराहे के कुएं पर
राजनीति के दाव पेच चले जाते थे
और हँसते मुसकुराते
सब सोने चले जाते थे
मेरे शहर
मुझे बहुत याद आते हो तुम
-कुशवंश
मीठी यादें ....सुन्दर ......
जवाब देंहटाएंसमय ही ज़िन्दगी का असली 'खाता' है !
जवाब देंहटाएंयादों का दिल से यूँ ही नहीं 'नाता' है !!
सुन्दर ,प्यारी यादें...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
;-)
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.03.2014) को "साधना का उत्तंग शिखर (चर्चा अंक-१५४४)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंयादों का खजाना अंत तक साथ और सुकून देता है ........
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें ज़िन्दगी भर ताज़ा रहती हैं....कहाँ भूल पाते हैं उनको...
जवाब देंहटाएंअब तो बस यादें हैं....
जवाब देंहटाएंसुन्दर,कोमल भाव..
सादर
अनु
बीते कल की अब तो यादें ही शेष रह गईं हैं क्या शहर क्या वहां के लोग |
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति |
आशा
दूरदर्शन पर
जवाब देंहटाएंपूरा मोहल्ला देखता था चित्रहार
और ठहाके लगाता था
खुबसूरत ,,अहसासों का वादा निबाहती रचना ,,,,,,
शुभकामनायें!
यादें साये सी हर पल साथ ......... बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं