महेश कुशवंश

5 अगस्त 2013

उम्मीद है तो ...........



कहाँ चलूँ कि कोई
रास्ते  आसान लगें 
क्या कहूँ कि कोई
बिसरे हुए
अरमान जगें
सोचता हूँ तो कोई दिन
मुकम्मल नहीं होता
अंधेरी रात कभी
चाँद का घर नहीं होता
निकलेगा कोई सूर्य
सफ्फाक उजाले की तरह
जिस्म के घाव रहेंगे किसी
वादे कि तरह
ब्रम्हांड है , तारे हैं
और गोधूलि की बेला
धूल  के कणों में
छिपे दंश  का मेला
वो गयी रात  किसी
भीगते प्यादे  की तरह
फिर सुबह होगी किसी
मजबूत इरादे कि तरह
बस यूं ही
ठहरे हुए ये दिन भी 
गुजर जायेंगे
उम्मीद  है तो  छिपे चाँद सितारे भी नज़र आयेंगे ...

10 टिप्‍पणियां:

  1. उम्मीद है तो... ज़िन्दगी कायम है!

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्मीद है तो जीवन है.....
    बहुत सुन्दर कविता!!

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. बस यूं ही
    ठहरे हुए ये दिन भी
    गुजर जायेंगे
    उम्मीद है तो छिपे चाँद सितारे भी नज़र आयेंगे ...
    ......बहुत सुन्दर......

    जवाब देंहटाएं
  4. सब से बड़ा और सब का आसरा ...एक उम्मीद !कायम रहे!
    शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  5. आज 08/008/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया ..
    उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है ...

    जवाब देंहटाएं
  7. सहज प्रेरक रचना!! बहुत बहुत आभार, कुशवंश जी

    जवाब देंहटाएं
  8. बस यूं ही
    ठहरे हुए ये दिन भी
    गुजर जायेंगे
    उम्मीद है तो छिपे चाँद सितारे भी नज़र आयेंगे--उम्मीद के बल पर ही तो दुनियां टिकी है -बढ़िया अभिव्यक्ति
    latest post नेताजी सुनिए !!!
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में