कहाँ चलूँ कि कोई
रास्ते आसान लगें
क्या कहूँ कि कोई
बिसरे हुए
अरमान जगें
सोचता हूँ तो कोई दिन
मुकम्मल नहीं होता
अंधेरी रात कभी
चाँद का घर नहीं होता
निकलेगा कोई सूर्य
सफ्फाक उजाले की तरह
जिस्म के घाव रहेंगे किसी
वादे कि तरह
ब्रम्हांड है , तारे हैं
और गोधूलि की बेला
धूल के कणों में
छिपे दंश का मेला
वो गयी रात किसी
भीगते प्यादे की तरह
फिर सुबह होगी किसी
मजबूत इरादे कि तरह
बस यूं ही
ठहरे हुए ये दिन भी
गुजर जायेंगे
उम्मीद है तो छिपे चाँद सितारे भी नज़र आयेंगे ...
उम्मीद है तो... ज़िन्दगी कायम है!
जवाब देंहटाएंउम्मीद है तो जीवन है.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता!!
सादर
अनु
बस यूं ही
जवाब देंहटाएंठहरे हुए ये दिन भी
गुजर जायेंगे
उम्मीद है तो छिपे चाँद सितारे भी नज़र आयेंगे ...
......बहुत सुन्दर......
सब से बड़ा और सब का आसरा ...एक उम्मीद !कायम रहे!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आज 08/008/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है ...
सहज प्रेरक रचना!! बहुत बहुत आभार, कुशवंश जी
जवाब देंहटाएंबस यूं ही
जवाब देंहटाएंठहरे हुए ये दिन भी
गुजर जायेंगे
उम्मीद है तो छिपे चाँद सितारे भी नज़र आयेंगे--उम्मीद के बल पर ही तो दुनियां टिकी है -बढ़िया अभिव्यक्ति
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खूबसूरत रचना
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