महेश कुशवंश

16 जुलाई 2013

बहुत दूर तक निभाएंगे



हर शाम की 
जरूरी  नहीं  कि , रात हो
हर निःशब्द के बाद 
जरूरी नहीं  कि , बात हो 
स्वप्न  कितने भी 
डरावने हों , 
बीत जायेंगे 
फासले  कितने भी हों पुराने 
रीत जायेंगे 
कसक हैं , तो बस
धैर्य बनाए रखिये
संबधों की महक 
बंद आँखों में  
बसाए रखिये
लम्हे-लम्हे , 
खामोश अदाओं की तरह 
बीत जायेंगे 
बस यही जज़्बात
जिन्दगी का साथ 
बहुत  दूर तक निभाएंगे .



11 टिप्‍पणियां:

  1. लम्हे-लम्हे ,
    खामोश अदाओं की तरह
    बीत जायेंगे
    बस यही जज़्बात
    जिन्दगी का साथ
    बहुत दूर तक निभाएंगे .
    बहुत सुन्दर .......

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  2. 'हर शाम की
    जरूरी नहीं कि , रात हो'

    सुन्दर!

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  3. लम्हे-लम्हे ,
    खामोश अदाओं की तरह
    बीत जायेंगे
    बस यही जज़्बात
    जिन्दगी का साथ
    बहुत दूर तक निभाएंगे .
    सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  4. फोटो देखकर तो आनंद आ गया।
    और रचना पढ़कर तो जैसे मन प्रफुल्लित हो गया।
    बढ़िया।

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  5. धैर्य ही हर रिश्ता की कुंजी है
    latest post सुख -दुःख

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  6. बहुत ही अच्छी बात कहीं है आपने रचना में..
    बहुत ही बेहतरीन रचना...
    :-)

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  7. खुबसूरत जज़्बात......
    शुभकामनायें!

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  8. धीरज ही रिश्तों को बचाए रखेगा ...
    रिश्तों की खुशबू को भी !

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  9. वाह ही ...भीनी सी खुशबू रिश्तों की

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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