महेश कुशवंश

22 जून 2013

क्यों मूक रहे महादेव ....?


सैलाब  दर सैलाब 
अदभुत  जल प्रलय 
 कुपित धरती  , कांपता आकाश 
रौद्र रूप धरती पतित पावनी माँ 
मूक-दर्शक बने , संघारक शिव 
छोड़ा नहीं शरणागत को भी 
भूंख  से बिलबिलाते ,
यहाँ वहाँ पेड़ पर लटके लटके
पर्यटन प्रेमी या भक्तिमय , 
डरे सहमे लोग 
रोते  बिलखते , आर्तनाद करते 
बचने की गुहार लगाते
प्रकृति निहारते लोग 
छिपकर ,सिमटकर एक दुसरे को कस के पकडे
कंक्रीट के मंजिलों पे लटके
पेड़ों  की डालियों पर
पेट को दबाते , मदद को आसमान निहारते लोग
पत्थर मिले  पानी में  बहकर
हर-हर महादेव का जयघोष करते लोग 
मगर महादेव टस  से मस नहीं 
इतना आक्रोश क्यों 
अपने ही भक्तों पर
शरणागत रक्षक , 
भोले बाबा , 
कौन से अपराध की 
इतनी बेरहम  सज़ा
तिनका तिनका जीवन बिखरा 
चिंदी-चिंदी मन
सोचो , विचार करो
कहाँ  गलती हुयी
प्रकृति की कौन सी व्यवस्था को ललकारा
शांत खड़े पर्वतों को
किसने बारूद से  बिखेरा
किसने अँधेरे को मात देने
प्रकृति के विपरीत पर्वतों को कुपित किया
खोद दी सुरंगें
चीर कर सीना बिछा दी सड़के
बिना जाने
क्यों मूक रहे संघारक केदारनाथ ?
महा  भोले .. महादेव
शायद तुम भी जानते हो
मगर समझे नहीं
तुम समझते कहाँ हो बिना प्रतिकार ..
कोई भी बात ..
शायद अब समझो .....


7 टिप्‍पणियां:

  1. भगवन कभी किसी को कुछ नहीं देता ,ना दंड ना पुरष्कार ,वे तो चुपचाप देखते रहते है , दंड या पुरष्कार देती है प्रकृति
    latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !

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  2. कुश्वंश जी , यह करे कोई भरे कोई , का जीता जागता उदाहरण है।
    बेहद अफसोसजनक हालात हैं।

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  3. पता नहीं लेकिन महादेव के दर्शन अतिभयंकर दुर्गम ही रहते, इतनी सुगमताएँ न होती तो शायद इतनी जानें न जाती!!

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  4. अभी भी ये संकेत मानव समझ जाये ।

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  5. प्रकृति की कौन सी व्यवस्था को ललकारा
    शांत खड़े पर्वतों को
    किसने बारूद से बिखेरा
    किसने अँधेरे को मात देने
    प्रकृति के विपरीत पर्वतों को कुपित किया

    विचारणीय प्रस्तुति

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  6. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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