रात होने को है
मैं सड़क पर अकेली खड़ी हूँ
बहुत से कारवाले
गुजर गए है बिना रुके
मैंने भी कोशिश नहीं की किसी को रोकने की
सारी भरी बसें
चली गयी बिना मुझे देखे
कई भूखे साथियों ने लिफ्ट देने की कोशिश की
मगर डरी हुयी मैं
हिम्मत नहीं जुटा पाई किसी के साथ जाने की
मैं पैदल चल देती हूँ
सत्रह किलोमीटर चल पाऊँगी क्या ?
घर तक सवेरा हो जायेगा
क्या करू ?
घर में अकेली माँ
जीतेजी मर रही होगी
मेरे बचकर आने की प्रार्थना कर रही होगी
और कुछ और समय बीत जाने पर
जानवर निकल आयेंगे मादों से
और हो जायेगा जंगल राज
रक्षक लाल-लाल आँखों से सराबोर
भक्षक हो जायेंगे
सरकार सोने चली जाएगी
पहरुए तमाशबीन बन जायेंगे
आज मुझे नज़र नहीं आ रही बचने की कोई उम्मीद
ये देश मेरा है
क्या मुझे बचने की
कोई उम्मीद करनी चाहिए
क्या मैं जीवित रहूँगी
शायद .....
आज के हलात पर बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमार्मिक है-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
प्रश्न बहुत ही जटिल है, नारी का अस्तित्व आज सवाल बनकर रह गया है...
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
यही आशंका आज सब के मन में है
जवाब देंहटाएंNew post तुम ही हो दामिनी।
इंसानियत को चुनौती देती रचना....
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
आज के हालत पर सटीक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना...
आज के हालात का बहुत सजीव चित्रण..बहुत मर्मस्पर्शी...
जवाब देंहटाएंकम से कम आज के परिदृश्य में तो ये उम्मीद कोई नहीं कर सकता ।
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति.बेहद मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंसवाल वास्तव में कटोचता है
जवाब देंहटाएंकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
जवाब देंहटाएंआशंकित मन को आशान्वित बनाना होगा।
जवाब देंहटाएंहर स्त्री और उसके घरवाले किसी अनहोनी की आशंका में जीते हैं, मगर जीवन है तो घर में बंद हुआ भी नहीं जा सकता. हौसला बढ़ाकर हर परिस्थिति का मुकाबला करना ही होगा. आज के हालात की सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंक्या मुझे बचने की
जवाब देंहटाएंकोई उम्मीद करनी चाहिए
क्या मैं जीवित रहूँगी
शायद .....
,,,,आज के हालत पर सटीक