महेश कुशवंश

29 जनवरी 2013

क्या मैं जीवित रहूँगी


रात होने को है
मैं सड़क पर अकेली खड़ी हूँ
बहुत से कारवाले
गुजर गए है बिना रुके
मैंने भी कोशिश नहीं की किसी को रोकने की
सारी भरी बसें
चली गयी बिना मुझे देखे
कई भूखे साथियों ने लिफ्ट देने की कोशिश की
मगर डरी हुयी मैं
हिम्मत नहीं जुटा पाई किसी के साथ जाने की
मैं पैदल चल देती हूँ
सत्रह किलोमीटर चल पाऊँगी क्या ?
घर तक सवेरा हो जायेगा
क्या करू ?
घर में अकेली माँ
जीतेजी मर रही होगी
मेरे बचकर आने की प्रार्थना कर रही होगी
और कुछ और समय बीत जाने पर
जानवर निकल आयेंगे मादों से
और हो जायेगा जंगल राज
रक्षक लाल-लाल आँखों से सराबोर
भक्षक हो जायेंगे
सरकार सोने चली जाएगी
पहरुए तमाशबीन बन जायेंगे
आज मुझे नज़र नहीं आ रही बचने की कोई उम्मीद
ये देश मेरा है
क्या मुझे बचने की
कोई उम्मीद करनी चाहिए
क्या मैं जीवित रहूँगी
शायद .....

15 टिप्‍पणियां:

  1. आज के हलात पर बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. मार्मिक है-
    आभार आदरणीय-

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  3. प्रश्न बहुत ही जटिल है, नारी का अस्तित्व आज सवाल बनकर रह गया है...

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  4. मार्मिक अभिव्यक्ति |
    आशा

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  5. इंसानियत को चुनौती देती रचना....

    सशक्त अभिव्यक्ति..
    सादर
    अनु

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  6. आज के हालत पर सटीक अभिव्यक्ति..
    बेहद मार्मिक रचना...

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  7. आज के हालात का बहुत सजीव चित्रण..बहुत मर्मस्पर्शी...

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  8. कम से कम आज के परिदृश्य में तो ये उम्मीद कोई नहीं कर सकता ।

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  9. सटीक अभिव्यक्ति.बेहद मार्मिक रचना

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  10. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  11. आशंकित मन को आशान्वित बनाना होगा।

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  12. हर स्त्री और उसके घरवाले किसी अनहोनी की आशंका में जीते हैं, मगर जीवन है तो घर में बंद हुआ भी नहीं जा सकता. हौसला बढ़ाकर हर परिस्थिति का मुकाबला करना ही होगा. आज के हालात की सटीक अभिव्यक्ति.

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  13. क्या मुझे बचने की
    कोई उम्मीद करनी चाहिए
    क्या मैं जीवित रहूँगी
    शायद .....
    ,,,,आज के हालत पर सटीक

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-कुश्वंश

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