महेश कुशवंश

22 दिसंबर 2012

मुझे जन्म चाहिए ?

तुम्ही बताओ
क्या किसी को यहाँ जन्म लेना चाहिए
दरिंदों की जमीन पर
असुरक्षित हवाओं में
घर की चाहार्द्वारी में कैद
मुझे
और कितना इंतज़ार करना चाहिए
माँ के सूख गए आंशू
सुन्न हाथ पैर लिए
बिस्तर  पर बीस साल से पड़े पिता के
दर्द को और कितना
इंतज़ार करना चाहिए
सड़क से अस्पताल
अस्पताल से कोर्ट और
फिर छत  को निहारती सूनी आँखे
मुझे कब तक
मरने का इंतज़ार करना चाहिए
तुम्ही बताओ
अब भी कहोगे तुम मुझे
यहाँ जन्म लेना चाहिए
तुम मोमबत्तियां जलाकर
मानव श्रखला बनाकर
सूरज डूबते ही
घर चले जाओगे
मैं अपने जन्म पर
सिसकती रहूँगी
किसके  पास है  इसका
वैधानिक इलाज़ , शायद नहीं
हमारे अन्दर छिपे
वीभत्स दरिन्दे का इलाज़ तो
हमारे अन्दर ही है न
अब आप उसे समझना ही न चाहें
समझ कर भी
अनजान रहें
तो कल फिर मैं
फेंक दी जाऊंगी  किसी सड़क पर
और तुम
शोर मचाते रहना
शहर दर शहर .


9 टिप्‍पणियां:

  1. जन्म तो लेना चाहिए, साथ ही ऐसे दरिंदों को सबक भी सिखाना होगा।

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  2. मार्मिक प्रस्तुति - संदीप जी के सुझाव से पूर्ण सहमति

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  3. जन्म भी लेंगी...और सामना भी करेंगी....
    मार्मिक प्रस्तुति....

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  4. कवि रो रहा है, कविता सिसक रही है, संवेदना भावों पर बुरी तरह लिपटी हुई है। यही हाल पाठकों का भी है।

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  5. वीभत्स दरिन्दे का इलाज़ तो
    हमारे अन्दर ही है न
    अब आप उसे समझना ही न चाहें
    समझ कर भी
    अनजान रहें
    तो कल फिर मैं
    फेंक दी जाऊंगी किसी सड़क पर

    सच कहा आपने

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  6. दुखी मन की पुकार ....
    हैवान का होगा अब शिकार !

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  7. उम्मीद पर दुनिया कयाम है

    एक रोशनी की मशाल हम सब थामे
    काफिला साथ साथ तैयार हो जाएगा

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  8. बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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