महेश कुशवंश

21 दिसंबर 2012

खुश नसीब


वो जो दिल के करीब है
वो कहाँ ?
खुश नसीब  है
दूर रहकर भी जो
जुबा पर रहे
हम तो लिपटे रहे
उघडे हुए
वस्त्रों की तरह
प्रयुक्त हुए जंग में
जंग के
अस्त्रों की  तरह
चले थे बहुत दूर
साथ निभाने....
भरोसा लेकर
हुए  ओझल 
अधूरा सा सहारा देकर
तुम्हे खोजू कहाँ मैं
ढूंढकर लाऊँ कैसे
इस शूल से जंगल में
कोई फूल को पाऊँ  कैसे
शब्दों का मकड  जाल है
और जाल में
फसा है कोई
रक्त् सने  दिल में
बसा दर्द
भुलाऊँ कैसे
उलझा हुआ हूँ जाल में
और रास्ता नहीं है कोई
सोचता हूँ
बुने जाल में
जाल छुडाऊँ कैसे


11 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  2. हर कोई जाल में उलझा-उलझा सा है,
    उलझन न हो जिसके जीवन में कोई
    ऐसा खुशनसीब अब मिलता कहाँ है...
    गहन अभिव्यक्ति के लिए आभार

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  3. बेहतरीन शब्दों में कही गयी बाते।

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  4. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  5. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    मेरी नई पोस्ट:गांधारी के राज में नारी !

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  6. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  7. बड़ी कशमकश है ...जिन्दगी में ..
    इस को सुलझाऊं कैसे ....

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  8. करे आर्त नाद अन्तः पुकार ,क्यों छोड़ दिया बीच माझ धार ---भावों की सुन्दर लडियां अच्छी रचना हेतु बधाई

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  9. बेहतरीन अभिव्यक्ति...
    क्या कहने...
    लाजवाब..
    :-)

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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