कितने आंसू पी गये
होते
काश: हम जी गये होते…
तुम्हारा अहसास तुम्हारी
परछाइयां
तुम्हारा आगोश तुम्हारी
रुश्वाइयां
कितने मोती पिरो गये
होते
काश: हम जी गये होते…
जाते जाते
कुछ पीछे मुड्ते
साथ जीते
कुछ साथ में मरते
कुछ तुम
भी जहर पी गये होते
काश: हम जी गये होते…
चीखें
थी आंशू थे खमोशियां थीं
सब जीते
जी समझ गये होते
काश: हम जी गये होते…
शाम है, शून्य है और डूबता सूरज
कुछ मूल्य
समझ गये होते
काश: हम जी गये होते…
-कुश्वंश
ग़र करते जो न वो जफ़ा....
जवाब देंहटाएंतो कुछ पल ...हम और जी गये होते !
खूबसूरत अहसास !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई सर जी ||
कोमल अहसास लिए भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसास, सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमन को छू गई
जिस भाव स्तर पर रचना रची गयी है उसके धरातल पर उतरना साधारण मन के पाठकों के लिए सहज नहीं। यदि कोई अर्थ के धरातल पर उतरेगा भी ... तो वह कुछ समय विचर कर बिना विचारे 'वाह' करके जाने की औपचारिकता निभाएगा।
जवाब देंहटाएंकुश्वंश जी, आपकी रचनाएँ अति संवेदनशीलता का परिणाम होती हैं और वह प्रस्तुत होने में बिलकुल नहीं हिचकतीं, और न ही व्याकरण की परवाह करती हैं।
कभी-कभी लगता है खुद कवि कहलाकर भी अन्य कवि मन को क्योंकर नहीं साफ़-साफ़ पढ़ पाता। फिर महसूस होता है कि शायद ये स्थिति अन्य पाठक बंधुओं की मेरी रचनाओं पर भी होती होगी।
सच, कितना कठिन है दूसरे मन की थाह सही-सही ले पाना!
संकोच भी हो रहा है कि जिसे सब समझ गए उसे मैं क्योंकर नहीं समझ पाया।
क्या यह रचना प्रिय से बिछड़ने की कसक तो नहीं???
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी आपकी सदासयता का आभार , आपकी लेखन गहराइयों को बखूबी समझता हूँ मैं. बस इतना ही कहना चाहता हूँ .
हटाएंहमारे, आपके सबके अंतर में हैं एक एक आकाश और उनमे उड़ते है बहुत से बिहग , मै तो जब भी कोई पक्षी पकड़ पाता हूँ , कोई कविता आकार ले लेती है. और आप जैसे सुधी जनों की प्रशंशा पा जाता हूँ बस ....
ख़लिशे-तर्के-तल्लुक पर एक बहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंसब जीते जी समझ गये होते
जवाब देंहटाएंकाश: हम जी गये होते…
शाम है, शून्य है और डूबता सूरज
कुछ मूल्य समझ गये होते
काश: हम जी गये होते… वही काश !
एक विशेष हालात पर खूबसूरत रचना गढ़ी है.
जवाब देंहटाएंज़रूरी नहीं की कविता के भाव कवि के मनोभावों को ही दर्शाए.
शाम है, शून्य है और डूबता सूरज
जवाब देंहटाएंकुछ मूल्य समझ गये होते
काश: हम जी गये होते…
बिल्कुल सही ... बस यही शेष रह जाता है ...
कुश्वंश जी नमस्कार, सुंदर पंक्तिया रच डाली है आपने काश हम जी गए होते -------------
जवाब देंहटाएंसब जीते जी समझ गये होते
जवाब देंहटाएंकाश हम जी गये होते…
काश .... यही शब्द बाकी रह जाता है