आज मैं
बहुत हल्की हो गयी हूँ
रुई की तरह
हवा से भी हल्की
पानी का घूँट मेरे अन्दर नहीं जाता तो क्या
मुझे प्यास भी तो नहीं रही
ये देखो मैं हाथ हिला सकती हूँ
पैर इधर उधर नचा सकती हूँ
हवा में भर सकती हूँ कुलांचे
मगर वो कौन है
जो उस बिस्तर पर पड़ा है
निर्जीव
बिलकुल मेरी तरह
पूरे शरीर में बड़े-बड़े फफोले
फफोलों से रिसता रक्त
मैंने तीन साल से
कोई करवट नहीं ली
छह सालों से अपने पैरों पर नहीं चली
सिर्फ दवाएं खाई
और सही इन्जेकसन की पीड़ा
मेरे दादा जी जो फफक रहे थे
न जाने क्यों भीतर से संतुस्ट थे
सालों के दर्द से मेरी मुक्ति के लिए
मेरा भाई जो दूर देश जा बसा था
मेरे मृत शरीर से मिलने को
बेताब था
भैया अबकी रक्षाबंधन पर आयीफोन लूंगी
मगर उसने कुछ नहीं सुना
बस रोता रहा
माँ जो रातदिन मेरे टूटे शरीर को सम्हाले थी
धाड़ मार कर रो रही थी
लोग सांत्वना दे रहे थे
रोती क्यों हो मुक्ति मिल गयी उसे
कितने कष्ट में थी
मुझे आज से छह साल पहले की याद है
जब मैं
आख़िरी बार स्कूटर से घर आयी थी
और फिर कभी बाहर नहीं गयी
पता नहीं क्या हुआ अचानक
संसार में बस थोड़े से हैं मेरे जैसे अभागे
पता नहीं क्या हुआ अचानक
संसार में बस थोड़े से हैं मेरे जैसे अभागे
वो सामने वाले अंकल भी रो रहे थे
जिन्हें मेरी शकल भी नहीं याद होगी शायद
लोग कह रहे थे मेरी उम्र चौबीस साल ही थी
मैं बिलकुल भूल गयी थी
मैं बिलकुल भूल गयी थी
रोते पीटते रहे लोग
मैं उडती रही
नीम से बेल पर , बेल से नीम पर
कभी अमलतास पर भी
मैं उडती रही
नीम से बेल पर , बेल से नीम पर
कभी अमलतास पर भी
मेरे शरीर को ले गए अंतिम यात्रा को
मैं हवा से हल्की अभी भी
नीम के पेड़ पर
बैठी हूँ मुक्त
चौबीस साल में ही
इस जीवनचक्र से मुक्त .
-कुश्वंश
आत्मा शरीर की पीड़ा से मुक्त .... अपने सहज होकर भी कितने असहज . पीड़ा में देखने से अलग हुए,पर क्या अलग हो पाए !!!
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी ...
जवाब देंहटाएंगहन वेदना से मुक्ति ...
एक तरह से ठीक ही है ...
प्रत्येक शब्द मन को छूता चला गया अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंचौबीस साल में ही
जवाब देंहटाएंइस जीवनचक्र से मुक्त
मेरे भैया बाइस साल में ही
कुछ दर्द याद दिला गई ये रचना
जीवन के बाद की हृदयस्पर्शी एहसास.अति सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करते एहसास ........
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट..... गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएक राह...मुक्ति की ओर........अपनी छाप छोड़ती हुई !
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