महेश कुशवंश

20 सितंबर 2012

पापा के डर से










मुझे याद नहीं 
पापा ने कब गोद में उठाया 
कब भागे आइसक्रीम खाने 
प्रसन्नता के अतिरेक में 
हां ये जरूर याद है 
माँ रह गयी पीछे भागते भागते
मुझे याद नहीं 
पापा ने कब अपने कन्धों पर बिठाकर 
रामलीला दिखाई 
और माँ खरीदती रही खिलौने 
कभी चाभी से चलने वाली कार 
कभी हसने वाला जोकर 
मुझे ये भी याद नहीं 
जब पहले दिन स्कूल जाने से डर  रहा था मैं 
पापा के पीछे नहीं छिपा 
माँ का आँचल काम आया था 
न जाने की नाकाम कोशिश में 
स्कूल में प्रवेश के बाद 
किस क्लास में बैठा 
पापा नहीं याद रखते 
और भूला हुआ लंच चपरासी से मिलता था 
वो जानता जो था मेरा क्लास 
हां जानते  पापा को वो भी थे 
जिन्हें पापा शायद नहीं जानते थे 
किसी नए शहर में 
बहुत से अनजान मददगार हो जाते थे पापा के 
मैं जान ही नहीं पाता 
पापा ये कारनामा कैसे करते 
पापा .. ! शायद 
एक बार ही रोये थे 
जब दादा जी नहीं रहे थे एकाएक 
बयालीस की उम्र में 
ये भी मुझे माँ से पता चला था 
मैं आज भी माँ से कहता हूँ 
जब भी कुछ कहना होता है पापा से 
मगर मेरे बच्चे 
बैठ जाते है पापा के कन्धों पर 
पूजा कर रहे हों पापा तब भी 
और जब पापा खाना खा रहे होते हैं 
आँख से उतार कर फेंक  देते हैं चश्मा 
अरे .. तोड़ दिया बदमाश ने 
कहकर 
आधा खाना छोड़कर भी 
भागते हैं चश्मा उठाने 
माँ बस मुस्कुरा देती है 
मैं उस समय भी चुपचाप 
वहाँ से खिसक जाता हूँ 
अभी भी 
पापा के डर से .

-कुश्वंश 





20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भाव प्रवण रचना है |
    आशा

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  2. ये ही है यादों का सुहाना सफ़र.....
    शुभकामनायें!

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  3. सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई

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  4. असल से मूल प्यारा होता है ....बहुत प्यारी सी रचना

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  5. पिता के संरक्षण को सार्थक और सम्मान के साथ प्रस्तुत करने का बेहतरीन प्रयास;;;; बधाईयाँ ||||

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  6. बहुत भावपूर्ण रचना ...हृदयस्पर्शी....

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  7. पापा से सबको डर लगता है. मगर पापा को असल से ज्यादा सूद प्यारा है. बचपन याद दिला दिया.मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है.

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  8. पापा -यानि नारियल,....यह बहुत संतुलन देता है
    मूल ठोस हो तो सूद के साथ ऐसे होते हैं दादा

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  9. बहुत सुंदर कविता । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  10. बचपन की यादें ताजा करती भावपूर्ण रचना.

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  11. बहुत सुंदर कवि‍ता...पीढ़ि‍यों में आ रहा अंतर साफ झलकता है....उस समय के पापा और अब के पापा में.....

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  12. आज कल के बच्चे पापा से कहाँ डरते हैं .... और हमेशा मूल से ज्यादा प्यारा सूद होता है .... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  13. वाह ! छू गयी दिल को रचना !

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  14. किसी नए शहर में
    बहुत से अनजान मददगार हो जाते थे पापा के
    मैं जान ही नहीं पाता
    पापा ये कारनामा कैसे करते ....

    मन को छू गयी यह रचना

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  15. हृदय को छूती हुई बहुत सुंदर अभिव्यक्ती .....
    मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता ही है ......!!

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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