महेश कुशवंश

2 सितंबर 2012

शहर से पलायन कर आया सुकून


कल गाव की 
पगडंडियों से जुडी 
सूनसान सड़क  पर 
इधर उधर झुके पेड़ों से आक्छादित 
मिल गया मुझे 
शहर से पलायन कर आया सुकून 
वो बड़े मजे से 
एक पेड़ की छाव तले बैठा 
चैन की बंसी बजा रहा था 
मुझे तो नहीं लग रहा था 
अभावों से त्रर्सित है वो 
मैंने आगे बढी कार को पीछे किया 
और उसके सामने ला खड़ा किया
वो न विचलित हुआ न आंदोलित 
मानों  उसे अंदेशा था 
मैं आऊँगा  
वो मुझे देख मुस्कराया 
मुझे मालूम था तुम आओगे 
और तुम ही क्यों 
हर वो शख्स जिसे गाव की मिट्टी से 
कोई लेना देना है 
शहर से पलायन करेगा 
.......
रेल पटरियों के इर्द गिर्द 
सडांध जीते तीनों पीढ़ियों के लोग 
रात के सन्नाटे में 
चौराहों और रैन बसेरों पर
रात्रि क्रिया में मग्न 
सूरज निकलते ही भागम-भाग 
पान मसाला ,भुट्टे ,नीबू और लकड़ी का कोयला 
खीरे, ककडी और केलों से 
ठेले सजाते लोग 
सांझ होते हे 
देशी ठेकों पर 
इसकी उसकी सबकी माँ बहनों की 
इज्ज़त उतारते और खिलखिलाते लोग 
स्कूटरों 
मोटर साइकिलों  और छोटी बड़ी कारों से 
सम्रधता का स्वांग भरते लोग 
मालूम है सुकून तो तरस जायेंगे 
और भाग कर फिर यही आयेंगे 
.....
बेहतरीन माल 
कंक्रीट के जंगल 
और रेव सिनेमा भी 
बहुत दूर तक सुकून नहीं दे पाएंगे 
बर्गर,पीजा और महा ठंडी बिअर 
कब तक अपने रोग छिपाएंगे 
अपनों के सुख से विचलित 
अपने  दुखों का ठीकरा   दूसरों पर फोड़ते 
कब तक  भ्रम में जियेंगे 
पलायन कर यही आयेंगे 
मैं जो वहाँ से भाग आया हूँ 

देखो  
इस पेड़ की गिरती पत्तियों को देखकर 
यहाँ कोई नहीं हंसता 
इस पर उगे हुए फल 
पहले आओ पहले पाओ की तर्ज़ में है
इन पर कोई दाव  नहीं लगाता  

सुकून ने मेरा हाथ पकड़ लिया 
आओ बैठो 
आये हो तो कुछ महसूस करो 

मैं  हाथ छुडाकर भागा 
मुझे वापस जाना है 
वहा घर पर मेरे इंतज़ार में हैं 
डोमिनोस से मगाए गए पीजा के साथ 
बिग बाज़ार से आये मोमोस , कोल्ड्रिंक 
और आँखों में चमक 
वीकेंड के इंतज़ार में मेरे बच्चे ..

-कुश्वंश 

13 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत कविता भाई कुश्वंश जी |आभार

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  2. बहुत-बहुत सुन्दर
    बेहतरीन प्रस्तुति....
    :-)

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  3. वाह...
    गहन अर्थ लिए..
    बेहतरीन प्रस्तुति...

    सादर
    अनु

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  4. वाह क्या बात है बहुत ही सरल शब्दों में यथार्थ का आईना दिखती सार्थक एवं अनुपम भाव संयोजन से सजी बहुत ही सार्थक रचना आभार....

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  5. गाँव का सादा जीवन , शहर में कहाँ नसीब होता है .
    यूँ ही जीना पड़ेगा ,, भागम भाग में .

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  6. "antardwand" ko bakhubi bayan kiya,Badhai.
    Mere do naii rachnaye padhe aur tippani de.dhanyvad.

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  7. बहुत खूबसूरत !

    चट्टानों में रहने की
    आदत अगर हो जाये
    पेड़ पौंधे हरी घास
    के चित्रों से काम चल जाये
    सुकून रोके और कहे
    आ बैठ दो पल
    उसे शोर की बहुत
    ही याद आ जाये !

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  8. कल गाव की
    पगडंडियों से जुडी
    सूनसान सड़क पर
    इधर उधर झुके पेड़ों से आक्छादित
    मिल गया मुझे
    शहर से पलायन कर आया सुकून

    सभी रचनाएं अच्छी लगीं

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  9. गजब की अभिव्यक्ति ! लोग आधुनिकता की होड़ में "सुकून" से दूर हो गए हैं ! चलो वापस चलें गाँव की ओर !

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  10. मैं हाथ छुडाकर भागा
    मुझे वापस जाना है
    वहा घर पर मेरे इंतज़ार में हैं
    डोमिनोस से मगाए गए पीजा के साथ
    बिग बाज़ार से आये मोमोस , कोल्ड्रिंक
    और आँखों में चमक
    वीकेंड के इंतज़ार में मेरे बच्चे ..

    ....लाज़वाब अभिव्यक्ति ...इस आधुनिकता की दौड़ में कितने दूर हो गये हैं सुकून से और इस मकडजाल से निकलने का कोई रस्ता भी नहीं दिखाई देता...

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  11. हर वो शख्स जिसे गाव की मिट्टी से
    कोई लेना देना है
    शहर से पलायन करेगा
    .....सही कहा है बढ़िया रचना !

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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