कल गाव की
पगडंडियों से जुडी
सूनसान सड़क पर
इधर उधर झुके पेड़ों से आक्छादित
मिल गया मुझे
शहर से पलायन कर आया सुकून
वो बड़े मजे से
एक पेड़ की छाव तले बैठा
चैन की बंसी बजा रहा था
मुझे तो नहीं लग रहा था
अभावों से त्रर्सित है वो
मैंने आगे बढी कार को पीछे किया
और उसके सामने ला खड़ा किया
वो न विचलित हुआ न आंदोलित
मानों उसे अंदेशा था
मैं आऊँगा
वो मुझे देख मुस्कराया
मुझे मालूम था तुम आओगे
और तुम ही क्यों
हर वो शख्स जिसे गाव की मिट्टी से
कोई लेना देना है
शहर से पलायन करेगा
.......
रेल पटरियों के इर्द गिर्द
सडांध जीते तीनों पीढ़ियों के लोग
रात के सन्नाटे में
चौराहों और रैन बसेरों पर
रात्रि क्रिया में मग्न
सूरज निकलते ही भागम-भाग
पान मसाला ,भुट्टे ,नीबू और लकड़ी का कोयला
खीरे, ककडी और केलों से
ठेले सजाते लोग
सांझ होते हे
देशी ठेकों पर
इसकी उसकी सबकी माँ बहनों की
इज्ज़त उतारते और खिलखिलाते लोग
स्कूटरों
मोटर साइकिलों और छोटी बड़ी कारों से
सम्रधता का स्वांग भरते लोग
मालूम है सुकून तो तरस जायेंगे
और भाग कर फिर यही आयेंगे
.....
बेहतरीन माल
कंक्रीट के जंगल
और रेव सिनेमा भी
बहुत दूर तक सुकून नहीं दे पाएंगे
बर्गर,पीजा और महा ठंडी बिअर
कब तक अपने रोग छिपाएंगे
अपनों के सुख से विचलित
अपने दुखों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ते
कब तक भ्रम में जियेंगे
पलायन कर यही आयेंगे
मैं जो वहाँ से भाग आया हूँ
देखो
इस पेड़ की गिरती पत्तियों को देखकर
यहाँ कोई नहीं हंसता
इस पर उगे हुए फल
पहले आओ पहले पाओ की तर्ज़ में है
इन पर कोई दाव नहीं लगाता
सुकून ने मेरा हाथ पकड़ लिया
आओ बैठो
आये हो तो कुछ महसूस करो
मैं हाथ छुडाकर भागा
मुझे वापस जाना है
वहा घर पर मेरे इंतज़ार में हैं
डोमिनोस से मगाए गए पीजा के साथ
बिग बाज़ार से आये मोमोस , कोल्ड्रिंक
और आँखों में चमक
वीकेंड के इंतज़ार में मेरे बच्चे ..
-कुश्वंश
अद्भुत कविता भाई कुश्वंश जी |आभार
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति....
:-)
वाह...
जवाब देंहटाएंगहन अर्थ लिए..
बेहतरीन प्रस्तुति...
सादर
अनु
Khubsoorat....
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है बहुत ही सरल शब्दों में यथार्थ का आईना दिखती सार्थक एवं अनुपम भाव संयोजन से सजी बहुत ही सार्थक रचना आभार....
जवाब देंहटाएंगाँव का सादा जीवन , शहर में कहाँ नसीब होता है .
जवाब देंहटाएंयूँ ही जीना पड़ेगा ,, भागम भाग में .
"antardwand" ko bakhubi bayan kiya,Badhai.
जवाब देंहटाएंMere do naii rachnaye padhe aur tippani de.dhanyvad.
बहुत खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंचट्टानों में रहने की
आदत अगर हो जाये
पेड़ पौंधे हरी घास
के चित्रों से काम चल जाये
सुकून रोके और कहे
आ बैठ दो पल
उसे शोर की बहुत
ही याद आ जाये !
bhawnaon ka bahot khoobsurat andaz.....
जवाब देंहटाएंकल गाव की
जवाब देंहटाएंपगडंडियों से जुडी
सूनसान सड़क पर
इधर उधर झुके पेड़ों से आक्छादित
मिल गया मुझे
शहर से पलायन कर आया सुकून
सभी रचनाएं अच्छी लगीं
गजब की अभिव्यक्ति ! लोग आधुनिकता की होड़ में "सुकून" से दूर हो गए हैं ! चलो वापस चलें गाँव की ओर !
जवाब देंहटाएंमैं हाथ छुडाकर भागा
जवाब देंहटाएंमुझे वापस जाना है
वहा घर पर मेरे इंतज़ार में हैं
डोमिनोस से मगाए गए पीजा के साथ
बिग बाज़ार से आये मोमोस , कोल्ड्रिंक
और आँखों में चमक
वीकेंड के इंतज़ार में मेरे बच्चे ..
....लाज़वाब अभिव्यक्ति ...इस आधुनिकता की दौड़ में कितने दूर हो गये हैं सुकून से और इस मकडजाल से निकलने का कोई रस्ता भी नहीं दिखाई देता...
हर वो शख्स जिसे गाव की मिट्टी से
जवाब देंहटाएंकोई लेना देना है
शहर से पलायन करेगा
.....सही कहा है बढ़िया रचना !