मन का मंथन
कानों को छूती
झकझोरती
पुरवा हवा
आभासी स्याही ,कलम और
स्क्रीनी पन्नें पर उभरे
कुछ शब्द
स्वप्नीली आँखों से ढलके
सुर्ख अश्रुबिंदु
अनहोनी सिहरन से
उत्थित रोये
या फिर
दोनों होंठ मिलकर बनायें जो
मोनालिसाई मुस्कान
किसी सुखद होनी के इंतज़ार में
बंद आँखों की बोझिल पलकें
किसी कदम्ब के इर्द गिर्द
अठखेलिया करते
पेम-रस भूंखे प्रश्न
और उन प्रश्नों में
कुछ और प्रश्न भरते
निरुत्तरित उद्धव
गोपियों में न जाने कौन सी
आस जागते
द्वारिका गए कृष्ण
बताओ
इसके सिवा और कौन से तरीकों से
व्यक्त होती है
हमारी अभिव्यक्तियाँ
-कुश्वंश
गोपियों में न जाने कौन सी
जवाब देंहटाएंआस जागते
द्वारिका गए कृष्ण
बताओ
इसके सिवा और कौन से तरीकों से
व्यक्त होती है
हमारी अभिव्यक्तियाँ
sunder
uttam bhav
rachana
अनहोनी सिहरन से
जवाब देंहटाएंउत्थित रोये
या फिर
दोनों होंठ मिलकर बनायें जो
मोनालिसाई मुस्कान
वाह !!!!! अद्भुत.....
गज़ब !!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंनदी में बारिश की बूंदें गिरें... वैसा ही सौन्दर्य भाव है इस रचना में
जवाब देंहटाएंसुन्दर और अद्दभुत रचना....
जवाब देंहटाएं:-)
निरुत्तरित उद्धव
जवाब देंहटाएंगोपियों में न जाने कौन सी
आस जागते
द्वारिका गए कृष्ण
बताओ
इसके सिवा और कौन से तरीकों से
व्यक्त होती है
हमारी अभिव्यक्तियाँ
वाह ! खुबसूरत !!!