महेश कुशवंश

26 अगस्त 2012

अशांत


  









कौन जाने 
किस जहां में 
जा रहा हूँ
मैं 
मन को किस 
अंधी गली में 
पा रहा हूँ 
मैं
सोचता हूँ 
रास्तों को 
सरल  
कुछ  आसान करलूं 
हाँथ में कुछ भी नहीं,
पर 
प्लान कर लूं 
बंद आँखों से चलो कुछ 
स्वप्न देखें 
कौन कैसे  वक्त में जी रहा है 
चित्र  देखें 
पीठ में जो 
भोक देते हैं छुरा 
आओ
ऐसे दोस्त 
सच्चे मित्र   देखें   
डूबते सूरज को देखें ओट से 
चाँद को  देखें 
ज़रूरी  खोट से
आदमी को आओ देखें 
वोट से 
आओ कुछ
खुशियाँ खरीदें  नोट से.

कुश्वंश 









7 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा जी ....आज सब कुछ खरीदा जा सकता हैं

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  2. बहुत सुन्दर व्यंजना है भाव की अर्थ की ,देखें कर लें जहां जहां "देखे" है .

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  3. बहुत सुन्दर व्यंजना है भाव की अर्थ की ,देखें कर लें जहां जहां "देखे" है .
    रविवार, 26 अगस्त 2012
    एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis
    एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis

    जवाब देंहटाएं
  4. ज़रूरी खोट से
    आदमी को आओ देखें
    वोट से
    आओ कुछ
    खुशियाँ खरीदें नोट से...

    How hard we struggle for small piece of happiness.

    .

    जवाब देंहटाएं
  5. नोट से खुशियाँ - क्षणिक और उबाऊ होती हैं

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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