मै ,
सोते हुए भी
आँखें नहीं मूंदना चाहता
डरता हूँ
कही न खुलीं तो
एक भय कहीं दूर तक
मेरे अंतर्मन मे
घर किये बैठा है
नस्वर शरीर को
नस्वरता प्रदान करने के लिए
कोई
छिपकर बैठा है
आत्मा से अलग
मेरे ही शरीर मे
जो मुझे अचानक पता लगेगा
और मुझे विवश करेगा
आँखे मूंदने को
स्वयं से भी
परिवेश से भी
साधारणतया आँख मूंदने मे
मुझे कोई भय नहीं
मगर अभी
मुझे
बहुत से काम करने हैं
देख रहे हो ना
दो स्कूल जाते हुए
दो स्कूल से निकलते हुए
पत्नी की दमित इच्छाएं
पूरी करनी हैं बहुत सी अभिलाषाएं
माँ-पिता की सूखी हड्डियों की पुकार
बहन को
किसी घर की दरकार
बहुत कुछ शेष है
हो सकता है किसी नज़रों मे
कुछ भी विशेष न हो ,
मगर
मेरी बंद पलकें
वीभत्सता को
खूब पहचानती है
इसीलिये
मैं
मुंदी आँखें
अभी
अफोर्ड नहीं कर सकता
इसी लिए आँखे खोलकर ही सोता हूँ
किसी
अद्रश्य भय से...
कुश्वंश
वाह कुश्वंश जी बहुत उम्दा प्रस्तुति जीवन की कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सच में सोने नहीं देती इस अहसास को बहुत सुन्दरता से शब्दों में ढाला है बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबस उत्तरदायित्वों के प्रति आँख न मूँदे .... बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक पोस्ट है बधाई कृपया वर्तनी शुद्ध कर लें,सोने पे सुहागा होगा -मै ,
जवाब देंहटाएंसोते हुए भी
आँखें नहीं मूंदना चाहता
डरता हूँ
कही न खुलीं तो
एक भय कहीं दूर तक
मेरे अंतर्मन मे
घर किये बैठा है
नस्वर शरीर
नास्वर्ता प्रदान करने के लिए कोई
छिपकर बैठा है
नश्वर ./नश्वरता /
"पत्नी ही दमित इक्षाएं"
पूरी करनी हैं बहुत सी अभिलाषाएं
पत्नी की दमित इच्छाएं कर लें .
इस "वीभास्त्ता" को
वीभत्सता कर लें
शुक्रिया करता हूँ आपका .हिमाकत की है .
आपकी सदासयता का शुक्रिया, आपकी बेबाक टिप्पणी का सदा से स्वागत है ..कुश्वंश
हटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंअद्भुत अभिव्यक्ति.....
शायद ये भय कहीं न कहीं हम सभी के भीतर रहता है...
बहुत अच्छी रचना.
सादर
अनु
साधारणतया आँख मूंदने मे
जवाब देंहटाएंमुझे कोई भय नहीं
मगर अभी
मुझे
बहुत से काम करने हैं
देख रहे हो ना
दो स्कूल जाते हुए
दो स्कूल से निकलते हुए.... भय यही प्यार है , और है ती है .... इस प्यार को मैंने जन्म दिया , मैंने जिया है ...
गहन भाव लिए सशक्त रचना ..आभार
जवाब देंहटाएंपर जीवन के प्रति ये भय कब तक ???
जवाब देंहटाएंBeautiful..
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंbhaut hi behtreen porstuti....
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंआँख खोलता है
जवाब देंहटाएंआदमी रात को
बंद कर लेता है
उसी आँख को दिन में
उजाले से भी डर
लगता है जब कभी !
बहुत सुंदर रचना !!