चलो मैं
तुम्हारे साथ चलूंगी
जीवन भर साथ निबाहूँगी
तुम्हारे पदचिन्हों पर
अपने पग रखूँगी
तुम्हें अपना सर्वस्वा मानकर
तुम्हें और तुम्हारे सभी को
ह्रदय से अपनाऊंगी
सभी अपनों को भूल कर
तुम्हारे रास्ते चलूंगी
अंकुरण
पलूमूल
छोटी छोटी कोंपलें
ह्रदय में जो उगी है
नोंच दूंगी
बस तुम्हारे खुरदुरे दरख़्त से स्पर्श पर
अपनी कोमल काया की पीड़ा सहूँगी
खरी उतरूंगी
तुम्हारी हर उम्मीदों पर
तिरछी होती तुम्हारी भौहों पर
सहमकर कोई ओट तलासूगी
मगर
कोई ओट शायद ही मिले
कभी मिली भी है क्या ?
तुमने तो न जाने कब मुझे
अपने से विदा कर दिया
मगर मुझे तो
उगी कोंपलों को
कही रोपना भी तो है
ये जानते हुए भी
कोंपलों का क्या होता है
कोंपलों का कौन होता है
कोई होता हो तो
तुम्ही बताओ ?
-कुश्वंश
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
गूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना ......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंछिपे हुए गहन भाव मन को छू जाते हैं....
सादर
अनु
सातों जन्म के कसमें-वादे पुरे करुँगी ......
जवाब देंहटाएंकोंपलों का क्या होता है
जवाब देंहटाएंकोंपलों का कौन होता है
कोई होता हो तो
तुम्ही बताओ ?
गहन भाव लिए अनुपम प्रस्तुति ...आभार
बहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअनकहे इशारे सबकुछ कह गए....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
सादर...
कम शब्दों में भी सब कुछ बयाँ कर दिया गया हैं ...खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति समर्पण के भावों से सनी है
जवाब देंहटाएंप्यारी रचना