चलो
में अपनी
हथेली काट लेता हूँ
निकलते रक्त से
हल कर लेता हूँ
सारे सवाल
दहक रहे जो
हमारे ह़ी
अप्रायोगिक मस्तिस्क में
अनगिनित प्रश्न
जो मान लेते है मुझे घोर असफल
और बार-बार
धकेलते है मुझे
कभी रस्सी और पंखे की ओर
और कभी
भारीभरकम रेल की पटरियों की ओर
में देख रहा हूँ
खून से लथपथ
बूढ़ी आँखों की रोशनी
पत्नी और मासूम बचपन के
रक्तरंजित आँसू
अपनी लम्बी खिची जबान से
अबोले प्रश्न
क्षतविक्षत शरीर के टुकड़े
बोरों में भरते
या फिर
डंडे से समेटते सुरक्षा के रखवाले
और उन्ही किन्ही टुकड़ों में
फैले है मेरे भी प्रश्न
हल की तलाश में
जिसके लिए मैंने ये सब किया था
मेरा जीवन का खोना भी
किसी प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ
उन्ही अनुत्तरित प्रश्नों को लेकर
में निकल पड़ा हूँ
फिर गंतव्य की ओर
इस आशा के साथ कि शाम को
लौटूंगा
नयी आशा और उमंगों के साथ .
-कुश्वंश
्गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंनयी आशा और उमंग के साथ लौट आना ही जीवन है... गहन भाव... आभार
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना...पर नयी आशा और उमंग के साथ लौटना ही सही है..
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी प्रभावी रचना....
जवाब देंहटाएंसादर।
कल 15/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
निराशाज़नक वातावरण में आशा बनाये रखना भी साहसिक कार्य है .
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंनिराशा में छुपी आशा को खोजना ही तो जीवन है....
अनु
गहन भाव लिए ... उत्कृष्ट लेखन
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/07/blog-post_7659.html
जवाब देंहटाएंमार्मिक भाव । सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउन्ही अनुत्तरित प्रश्नों को लेकर
जवाब देंहटाएंमें निकल पड़ा हूँ
फिर गंतव्य की ओर
इस आशा के साथ कि शाम को
लौटूंगा
नयी आशा और उमंगों के साथ .
....बहुत मर्मस्पर्शी...एक नयी आशा जगाती सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
उफ़ ...मार्मिक ..दिल के दर्द को लिख दिया गया हैं शब्दों में ढाल के
जवाब देंहटाएं