महेश कुशवंश

24 जनवरी 2012

मन की हदें


मन कभी कभी
हदे पार कर जाता है 
उन हदों को भी
जो कभी पार करने के लिए थी ही नहीं
मगर न मै उसे रोक सकता हूँ
न प्रयास ही करता हूँ
क्योकि मै भी
मन को हदे पार करते देखने का
सुख लेना चाहता हूँ
नैतिकता के इशारे
धरे रह जाते है
और कलयुगी रावन
अपहरण कर लेता है एक और सीता
रोज उसे घरों में आते जाते देखकर
उसी पान की गुमटी के पास
घात लगाकर
और तथाकथित राम
कलयुगी सीता को
ढूँढने का प्रयास नहीं करता
क्योकि वो रावन को जानता था
रावण को ही नहीं
वो तो उसकी माँ कोभी जानता था
जो उसके गाव की थी
जिसे वो चाची कहता था
जानता तो वो सूपनखा को भी था
जिसे उसका भाई
उठा लाया था गाव से
और ये अपहरण बदला भर था
मै ने पहले ही कहा था की
मन जब सारी हदे पार कर देता है
तो महाभारत होते देर नहीं लगती
और हमारी पौराणिक संस्कृति
तार तार हो जाती  है
द्रोमदी  के चीर हरण की तरह 
भरी सभा में  
ऐसे ही जैसे
सभ्रांत  घरों में झाडू -बर्तन करने वाली रेनू
जब कुंवारी माँ बनी 
सब कुछ ठीक रहा
मगर जब उसने जानना चाहा  उस बच्चे  का पिता
तो उसे समझ ही नहीं आया   
क्योंकी
हदे पार करने वाले मन
एक दो नहीं पांच थे
पांच मुख वाला एक रावण नहीं
एक मुख वाले पांच रावन
मगर रेनू समझ ही नहीं पायी
असली कौन है रावन
मगर अब वो जानना चाहती है  
एक रावण का नाम 
आखिर उसका भी कोई हक़ है
क्या अदालत ?
मन की हदे परिभाषित कर पायेगी
और रेनू को न्याय दिला पायेगी
और सभ्य समाज के रावन
दशहरे से पहले
ढूंढ  लिए जायेंगे ...
आप बताये रेनू का क्या होगा
क्या मिल पायेगे उसका हक़ ....? 

-कुश्वंश



29 टिप्‍पणियां:

  1. मन जब सारी हदे पार कर देता है
    तो महाभारत होते देर नहीं लगती
    अक्षरसः सत्य!

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  2. हदों से पार नाम नहीं ढूंढें जाते ... बेचारगी के सिवा वहाँ कुछ नहीं होता

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    1. शायद कोर्ट द्वारा पिता के नाम का खुलाशा होने से कुछ स्थितियां बदले और रावन पहचाने जा सकें

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |

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  4. मन की हदों की खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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  5. निशब्द कर दिया ....बस इतना ही कि ...पढ़ने के बाद झंझोर दिया आपकी कविता ने ..

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  6. उफ़ बेहद मार्मिक चित्रण किया है नग्न सत्य का कुश्वंश जी

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  7. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति
    कल 25/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, ।। वक्‍़त इनका क़ायल है ... ।।

    धन्यवाद!

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  8. आपके इस उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

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  9. निशब्द कर दिया..उत्‍कृष्‍ट रचना के लिए आभार..

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  10. दुखद सच्चाई को सामने लाती हुई आपकी रचना लाजवाब है...बधाई स्वीकारे

    नीरज

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  11. बातों बातों में बहुत गंभीर मुद्दा उठा दिया ।
    बेहद खौफनाक नज़ारा है ।

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  12. हदे पार करने वाले मन
    एक दो नहीं पांच थे
    पांच मुख वाला एक रावण नहीं
    एक मुख वाले पांच रावन

    ....बहुत मार्मिक प्रस्तुति जो अन्दर तक झकझोर देती है..आज समाज में ये रावण खुले आम घूम रहे हैं और राम का अस्तित्व एक कल्पना बन कर रह गया है. उत्कृष्ट प्रस्तुति..आभार

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  13. मन कि हद पार हो जाती है तो ऐसी दर्दनाक घटना का होना लाजमी है
    बहूत दुखद घटना है.मार्मिक कर देनेवाली प्रस्तुती ..

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  14. लाजवाब रचना..
    मन व्यथित हुआ...

    सादर.

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  15. बहुत ही उत्कृष्ट रचना | बहुत बढ़िया वर्णन कियाहै आपने |
    मेरी नई रचना जरुर देखें |
    मेरी कविता:शबनमी ये रात

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  16. असाधारण कृति
    शब्द रहित टिप्पणी
    यशोदा

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  17. मेरे सम्मुख भी यह प्रश्न ? चिन्ह बनकर खड़ा हो गया।
    क्या यह गणतंत्र है?
    क्या यही गणतंत्र है

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  18. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
    जय हिंद...वंदे मातरम्।

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  19. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  20. शुभकामनायें रेनू के लिए ...

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    1. वास्तव में रेनू को शुभकामनाये चाहिए क्योकि कोर्ट में उसके बच्चे के पिता के नाम का खुलाशा होना है.लखनऊ में.

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  21. रेनू के मन की व्यथा केवल रेनू ही समझ सकती है।

    मार्मिक...!

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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