सदियों से
जीता आ रहा हूँ मै
एक भय में
एक डर
जो कभी मेरा साथ नहीं छोड़ता
जो मै हूँ
क्या वही हूँ मै ?
या जो मै नहीं हूँ
उसी को लोग मुझे क्यों समझते है ?
तुमसे सम्पूर्णता की अपेक्षा
जब मेरा भय बढाती है
तब मुझे
तुम्हारे सहयोग की कोई
उम्मीद नहीं होती
मंदिर में नाक रगड़ता मै
सारा भय वहा उड़ेल देता हूँ
जहा भूंख से भीख मांगते बच्चे
मुझे अपने भय से
छोटे लगते है
और मै उन्हें
प्रसाद दिए बिना आगे बढ़ लेता हूँ
और सोचता हूँ
मैंने गलत किया
और एक भय फिर सर उठाने लगता है
अपने भय समेटे
सोते हुए भी
सपनो में भी
डरा महसूस करता हूँ
सोचता हूँ
इस डर से बचने के उपाय
कोई ताबीज़ पहन लू क्या ?
या कोई हवन करूं
मंदिर तो मै हो आया हूँ
सच्चे मन से नहीं गया क्या ?
रात भर जागते रहो की आवाज़
मुझे बुत बन जाने से रोक लेती है
रास्ते भर जाते है
भूकंप और पत्थर हो जाने का भय
मेरे दरवाज़े पर
हल्दी का तिलक लगा देता है
प्रार्थनाये होने लगती है
मस्जिदों से अज़ान भी
मगर भय नहीं जाता
न कही धरती हिली
न कोई बना बुत और पत्थर
बस भय कही दूर तक
चिपक कर बैठ जाता है
क्यों ?
दरवाजे पर शनी बाबा दस्तक देते है
मै उनके तेल में कुछ पैसे दाल देता हूँ
मेरा भय कम होगा क्या ?
ये मेरा देश है
ये भय भी मेरा है
न मैं देश से अलग हूँ
न मेरा देश भय से
काश ! कम ही हो जाय कुछ
शायद ......
-कुश्वंश
पल पल सुलगता भय... दुनिया से अनजाना.... कई बार तो खुद से भी !!
जवाब देंहटाएंनव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||
जवाब देंहटाएंअहसासों का बेहतरीन समावेश किया है आपने कुश्वंश जी...
जवाब देंहटाएंएक अज्ञात भय .... मेरे अन्दर भी रहता है !खुद में सोचती हूँ - कोई वजह इसके पीछे है क्या ! बहुत कुछ बतलाती रचना
जवाब देंहटाएंगहन भावों का समावेश ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंभय से आक्रांत .. खुद से भय
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता...
जवाब देंहटाएंसच है अपने हर कर्म हमें डराते हैं...बुरा किया तो उसका स्वाभाविक डर...और कुछ न किया तो भी डर तो कहीं पलता ही है ह्रदय में...
असुरक्षा की भावना भीतर होती हैं कहीं शायद...
शब्द शब्द बेजोड़
जवाब देंहटाएंनीरज
गहरी और अर्थपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंयह अज्ञात भय नजाने क्यूँ सभी के अंदर रहा करता है मगर इस से छुटकारा कभी किसी को न मिला है न मिलेगा शायद कभी क्यूँ की भय का कारण क्या है यह कोई नहीं जानता तो फिर चाहे जितना हवन पूजन कार्लो करालो कुछ नहीं होने वाला ना होगा कभी... सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आप्क स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
gahri aur bhawpurn dil se likhi rachna...:)
जवाब देंहटाएंnaye varsh ki shubhkamnayen..
भय से ज्यादा भय का भय मार जाता है ।
जवाब देंहटाएंह्यूमन सायकोलोजी है ही ऐसी ।
सुन्दर कविता ।
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति.........
जवाब देंहटाएंभयनाशक सभी उपायों के बाद भी भय नहीं जाता तो कम से कम कम ही हो जाये, वाह ,गहन अभिव्यक्ति कितनी सहजता से कह गये.
जवाब देंहटाएंIt's really very unfortunate to see everyone is living in some kind of fear.Can we fight it? Probably it is in our blood now...
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंगहन भावाभिव्यक्ति। सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की अनेकानेक शुभकामनाएं।
Can't we fight this "bhay" and become abhay ?
जवाब देंहटाएंwish we could ....
अर्थ-पूर्ण ! ये हमारे अपने कर्मों का भय ही हो सकता है???
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
कल 06/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
श्रीमान जी,
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग (जीवन विचार) का समर्थक बनने के लिए बहुत धन्यवाद। मुझे बहुत खुशी हुई। साथ ही मैँ आपको एक ऐसे ब्लॉग से अवगत कराना चाहता हूँ जो हिन्दी ब्लॉग जगत मेँ 'India Darpan' के नाम से जाना जाता है। इसका URL http://indiadarpan.blogspot.com है।
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-749:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
अशिक्षा और कुंद मन भय का वातावरण ही बनायेंगे ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
मन में उठते विचारो का समागम
जवाब देंहटाएंसशक्त और सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर सार्थक पोस्ट ......
जवाब देंहटाएंwelcome to new post--जिन्दगीं--
सार्थक/खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर.
sundar or sarthak bhavbhivykti...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbehtreen..............
जवाब देंहटाएंbhavo ki bahut hi sundar abhivykti....
जवाब देंहटाएंbehtarin rachana
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.