महेश कुशवंश

13 दिसंबर 2011

स्वय-पाल क़ानून चाहिए


मै कौन हूँ ?
मुझे नहीं  मालूम
मगर मै
वो बिलकुल नहीं हूँ
जो दिखता हूँ,
बिना पर्ची
मोटे डिस्काउंट पर
फुटपाथी दूकान से दवाए खरीदता हूँ
और पूछता हूँ
नकली तो नहीं है,
दरवाजे पर
मदर डेरी से आधे दामों पर
दूधिया से लेता हूँ दूध 
और पूछता हूँ
मिलावटी तो नहीं,
रेल के डिब्बे में
टी टी से तिकड़म भिडाता हूँ
और झटक कर  यात्री की सीट  
चैन से सफ़र करता हूँ
और पैरों पर खड़े
प्रतीक्छारत यात्री से कहता हूँ
भाई साहब कही और खड़े हो जाओ
मुझे तकलीफ हो रही है,
बिजली के मीटर में
डिवाइस लगवाकर
बिजली का कम भुगतान करता हूँ
और पूछता हूँ
बिजली रातभर क्यों नहीं आती,
सड़क पर आगे भागने की होड़ में
ट्राफिक ध्वस्त  कर देता हूँ
और  इसको उसको कोंस्ता  हूँ
जाम लगा देते है सब....
अपात्र को सरकारी दया ,
कुपात्र को  ऊंचा ओधा,
सच की आवाज़ को दबाती ऊंची आवाज़,
ऊंची आवाज़ तले
दबे  कराहते लोग,
और दबे हुवो  को आश्वासन देते
गली गली घुमते माइक,
सब कुछ लोकपाल ठीक कर सकता है क्या ?
सच कहू तो
इस देश में
लोकपाल के लिए लड़ने से पहले
स्वय-पाल क़ानून चाहिए
क्योंकी स्वकानूंन से बढ़कर
कोई लोकपाल नहीं
क्योंकी कुचली दबी और  सहमी  कौमे
इतिहास नहीं रचती
कोई ब्रम्हांड नहीं बनाती
और न ही धरती पर उकेरती है
चट्टानी बिम्ब
कर सको तो बढ़ो
और बनाओ एक नया सूरज
एक नयी धरती
एक नया आसमान
और उससे भी  पहले
एक नया इंसान
तब  तुम्हे  जरूरत नहीं होगी
किसी अन्ना की
किसी जंतर मंतर की
किसी लोकपाल की.


-कुश्वंश



25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सार्थक आंखे खोलती प्रस्तुति ... मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ .... मैं जरुर आज से ही सुधरूंगा, और आपके साथ चलूँगा. जय हिंद
    Life is Just a Life
    My Clicks
    .

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  2. लोकपाल के लिए लड़ने से पहले
    स्वय-पाल क़ानून चाहिए
    क्योंकी स्वकानूंन से बढ़कर
    कोई लोकपाल नहीं

    बिल्कुल सही...

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  3. बहुत सही लिखा है कुश्वंश जी ।
    पहले अपनी बुराइयों को ख़त्म करें , तभी बाहर की सफाई की जा सकती है ।

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  4. एक इकाई सुधरेगी तभी सुधार की कड़ी में और सूत्र जुड़ेंगे! शुरुआत स्वयं से ही करनी है!

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  5. मिलावटी तो नहीं,
    रेल के डिब्बे में
    टी टी से तिकड़म भिडाता हूँ
    और झटक कर यात्री की सीट
    चैन से सफ़र करता हूँ
    ..... बहुत बढ़िया... काफी कुछ कह दिया आपने..कुश्वंश जी ।

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  6. सटीक और सार्थक बात कही है ... अच्छी प्रस्तुति

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  7. कर सको तो बढ़ो
    और बनाओ एक नया सूरज
    एक नयी धरती
    एक नया आसमान
    और उससे भी पहले
    एक नया इंसान
    तब तुम्हे जरूरत नहीं होगी
    किसी अन्ना की
    किसी जंतर मंतर की
    किसी लोकपाल की.
    वाह क्या बात कही है आपने इंसान अगर खुद ही सारे नियमों का पालन करना सीख जाये और सुधार जाय तो शाद कभी किसी भी बात के लिए किसी भी तरह के लोकपाल की जरूरत ही कहाँ रेह जाती है सार्थक एवं सटीक प्रस्तुत ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  8. bahut khub...savayam par anushashan sabse jyada jaruri hai tabhi tasveer badal sakti hai.
    mere blog par bhi aapka swagat hai :)

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  9. bilkul sahi likha hai sabse pahle swayanpaal laao atah apne ko sudhaaro.achchi prerna deti hui rachna.

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  10. वाह! बहुत शानदार सोच है आपकी.
    खुद को ही ठीक कर लें तो किस लोकपाल की
    आवश्यकता है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार जी.

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  11. वाह!!!आपकी सोच की दाद देता हूँ अगर हम आप अपने सुधार ले तो
    लोकपाल की जरूरत ही नहीं,.....

    मेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........

    नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
    देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
    इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
    इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,

    अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने....
    मुझे अपार खुशी होगी........धन्यबाद....

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  12. बिल्कुल सही बात. हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा.

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  13. बिलकुल आपने हमारे मन की बात कह दी ...जब हम लाइन में खड़े अपनी बारी का इन्तजार करते है और कोई दबंग आगे बढ़ जाता है तो सोचते हैं कि अन्ना की तरफ जाएँ या दूसरी तरफ ...पिछली बार अन्ना कैंप की रिपोर्टिंग बीबीसी पर पढ़ कर लगा ...कैसी भीड़ है ये

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  14. Great creation !....A truth revealing poetry with a beautiful solution at the end.

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  15. बहुत सही कहा..सटीक बात....

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  16. इस ''मैं '' तलाश निरंतर ज़ारी रहेगी ...और जवाब कभी नहीं मिलेगा

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  17. बहुत सही कहा है आपने ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  18. बहुत सही कहा...

    नियम क़ानून क्या कर लेंगे,जबतक हम अपना आचरण नहीं सुधरेंगे..

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  19. सार्थक ... सच कहा है आज बस बातें ही बातें होती रहती अहिं और सब कुछ चलता भही रहता है ...

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  20. इस देश में
    लोकपाल के लिए लड़ने से पहले
    स्वय-पाल क़ानून चाहिए
    क्योंकी स्वकानूंन से बढ़कर
    कोई लोकपाल नहीं

    ....बहुत सच कहा है...बहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति...

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  21. लोकपाल के लिए लड़ने से पहले
    स्वय-पाल क़ानून चाहिए
    क्योंकी स्वकानूंन से बढ़कर
    कोई लोकपाल नहीं .....

    बहुत सार्थक रचना सर...
    स्वयं की बुराईयों का शमन ही सच्चा लोकपाल है....
    सादर बधाई....

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  22. bilkul sahi kaha, hamein lokpaal nahin swayampaal ki zarurat hai. khud galat karte aur dusron ko galat thahraate, khud galat hote hue bhi dusron ke imaandaar hone ki ummid rakhte. humsabhi bhrashtaachar ke doshi hain. sabhi khud ko sudhaar lein to koi lokpaal nahin chahaiye hoga.

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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