महेश कुशवंश

11 दिसंबर 2011

इंतज़ार


मुझे इंतज़ार है
उसका
जिससे भर जायेंगे
मेरी बेटी के जीवन में
इन्द्रधनुषी रंग
अपनी नन्ही-नन्ही
गोल गोल आँखों से दिखायेगा  
धरती-आसमान
संपूर्ण ब्राम्हाण्ड
परियों का देश
नन्हे हाथों से जकड लेगी
बालों की लटकती लट
लट छुड़ाने को जैसे ही झुकेगी
मारेगी नाक पर नन्हे पैर
आजायेंगे
बेटी के आँख में आंशू
शिकायत में हँसेगी वो
चीखेगी...... मम्मी......
और मम्मी ..
बचाने की जगह हस  रही होंगी
और वो
अजीब सी आवाज़ में
बजा रही होगी....शीटी
चलायेगी पैरों की
तेज़ रफ़्तार सायकिल
और साईकिल ..
तब और तेज हो जायेगी
जब नानी पकड़ेगी पैर
बदलने को डायपर
और माँ बेटी दोनों नाकाम हो जायेंगी
और पहनते ही अध् पहना डायपर
एक झटके में उतर जायेगा
और लटका होगा
दाहिने पैर के अंगूठे में
और यूं ही बज रही होगी शीटी
माँ और बेटी
हारे हुए मुक्केबाजों की तरह
रिंग में बैठ जायेंगी
पैरों   की साईकिल चलती ही जायेगी   
और बजती रहेगी
अपनी धुन में शीटी
मै
नानी और बेटी की शिकस्त पर
ताली मार के हंसूगा......

-कुश्वंश

12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ,बहुत सुन्दर कल्पना । हकीकत भी ऐसी ही होती है ।
    शुभकामनायें ।

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  2. pyara bachpan, komal bachpan, natkhat bachpan, sab kuch hai is rachna me.pahut pyaare ehsaas.

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  3. वो पल भी आएगा... शुभकामनाये....

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  4. कुश्वंश जी, आप तो वात्सल्य के सूरदास हो गये हैं आज...
    सूरदास जी ने कान्हा और यशोमती के मध्य की ममता को उकेरा... और आपने अपनी बेटी और नाती के बीच के वात्सल्य को शब्द दिये....
    सचमुच prem kaa sabse saatvik roop हैं 'ममता'... aanand aayaa padhkar.

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  5. सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  6. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति,बहुत प्यारी रचना शुभकामनायें समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  7. सुन्दर सारगर्भित रचना अच्छी लगी

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  8. बहुत प्यारी प्रस्तुति...आभार

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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