चाँद
तुम भी एक स्त्री को
स्त्री न रहने देने के
गुनाहगार हो
तुम्हारा नाम देकर
बूँद बूँद को तरसाया जाता है
त्याग और परम्पराओं के नाम पर
और जब भी कोई
दम तोड़ देती है निर्जला
महिमामंडित कर
आरोहित कर दिया जाता है स्वर्ग
और बना दी जाती है देवी
ये त्याग कोई पुरुष क्यों नहीं करता
स्त्रियों के लिए
सिर्फ आधे दिन के लिए ही
पानी छोड़ कर दिखाए
त्याग सिर्फ स्त्रियों के लिए ही क्यों ?
दुआए तो दोनों को मांगनी चाहिए
एक दुसरे के जीवन की
क्योकि साथ तो
दोनों को ही चाहिए
एक दुसरे का
पति के लम्बे जीवन के लिए
पानी की बूँद केलिए चाँद की प्रतीक्षा
एक दंड है जो
जेहन में बैठे डर को पोषित करता है
और एक शरीर
उसकी भरपाई के लिए
करता है लंबा इंतज़ार
कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार
एक पूरे समाज के प्रति ये
अमानवीयता बंद होनी चाहिए
और खोज लेने चाहिए दुसरे तरीके
पति की लम्बी उम्र के लिए
पति और पत्नी को मिलजुलकर
आँखों में बरस रहे प्यार और सम्मान
से बढ़ कर कोई लम्बी उम्र नहीं होती कारगर
पानी की बूँद के बिना तिल तिल त्याग कर
उम्र लम्बी नहीं होती
आक्रोश को जन्म देती है
और याद दिलाती है
सदियों से थोपी हुयी मजबूरी
जो सिर्फ स्त्री भोगती है
करवा चौथ के दिन .
-कुश्वंश
पानी की बूँद के बिना तिल तिल त्याग कर
जवाब देंहटाएंउम्र लम्बी नहीं होती
आक्रोश को जन्म देती है
निश्चय ही यह सत्य है और इस तरह के रूढिवादी परम्पराओं के औचित्य पर रचना सवाल खड़े कर रही है.
पुरुषो के लिए भी प्रासंगिक रचना......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंशुभ-कामनाएं ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_15.html
बहुत ही खुबसूरत....
जवाब देंहटाएंyeh paramparaayen yeh niyam sirf insaan ke hi banaaye hue hain bhagvaan nahi kahte ki bhookhe raho.jo striyan vrat nahi rakhti to kya vo jaldi vidhva ho jaati hain.yeh dhakoslon ke alava kuch bhi nahi.aapne yeh bahut tark sangat aalekh likha hai.bahut uttam.
जवाब देंहटाएंआँखों में बरस रहे प्यार और सम्मान
जवाब देंहटाएंसे बढ़ कर कोई लम्बी उम्र नहीं होती कारगर
पानी की बूँद के बिना तिल तिल त्याग कर
उम्र लम्बी नहीं होती
जो मात्र परम्परा निभाने के लिए व्रत करती हैं उनके लिए सटीक ... प्यार और सम्मान मन से होना चाहिए ..
बहुत सुंदर सोंच है आपकी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |
सोमवार चर्चा-मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
त्याग सिर्फ स्त्रियों के लिए ही क्यों ?
जवाब देंहटाएंदुआए तो दोनों को मांगनी चाहिए
एक दुसरे के जीवन की
क्योकि साथ तो
दोनों को ही चाहिए
एक दुसरे का
गीत में अभिव्यक्त नए विचार का स्वागत।
सुंदर सामयिक सोच.
जवाब देंहटाएंअपनी गलतियों के लिए बेचारे चाँद को क्यों दोष दिया जाये । वह तो समय पर ही निकल आता है । दीवारें तो हमने स्वयं खड़ी की हैं ।
जवाब देंहटाएंशायद सब सहमत न हों , लेकिन हम तो आपसे सहमत हैं ।
ये प्रेम और सम्मान का व्रत है जो मन से किया जाता है, और जहाँ ये सब होता है वहां न भूख आ पाती है न प्यास... आपकी चिंता और फिक्र का सम्मान करती हूँ...
जवाब देंहटाएंआँखों में बरस रहे प्यार और सम्मान
जवाब देंहटाएंसे बढ़ कर कोई लम्बी उम्र नहीं होती कारगर
बस यही भावना होनी चाहिये …………सुन्दर रचना।
बहुत ही अच्छी रचना ... आभार ।
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं की कद्र करती हूँ. इस तरह की सकारातमक सोच समाज को एक नयी दिशा दी सकती है. शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कई प्रश्नों के उत्तर मांगती है आपकी सोंच को नमन
जवाब देंहटाएंवाह ... दिल चीर के लिखा है आपने ...
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