महेश कुशवंश

14 अक्तूबर 2011

वही.. मधुप-मधु !










जब कभी भी
पलट जाते है
जिन्दगी के पन्ने
आ जाती है  खुशबू
भीनी भीनी
वो, 
जो तुम्हें सबसे अलग करती थी
मह्शूश होने लगती है
वही
रेशम सी  कोमल
स्पर्श की  सिहरन
और मैं पहुच जाता हूँ
उस पड़ाव  पर
जहाँ से प्यार के सारे रास्ते
स्पस्ट नज़र आने लगते है
खुलने लगते है 
बहुत  से क्षितिज
प्यार के
मनुहार के
तुम्हारे मुह फेरने के
भाग कर , पास आने के
परदे की ओट से मुस्कुराने के 
तुम्हारे स्कूल के  सामने इंतज़ार के
शहर के दुसरे कोने में
बने पार्क की बेंच में
धुंधलके में भी  कुछ और ठहर जाने के
और आज जब तुम
यही आस-पास बिखेरती हो
प्यार की सरिता
अभावों की गर्दिश से  निकलकर
सम्रद्धि  के  सागर में
सम्पन्नता के
तारों भरे आकाश में  भी 
वो खुशबू क्यों नहीं मिलती
जो
कभी कभी 
मिल जाती है  
अपने ही अंतस में 
वो संगीत क्यों नहीं बजता
जिससे सिहर उठता था रोम-रोम
आओ एक बार फिर तलाश लें
वही  जमीन
वही तारों भरा आकाश 
वही चाँद सितारे तोड़ लाने की बात
वही अपनी ही श्वांशों  से अन्विज्ञ
संभावना संसार
वही मधुप-मधु
क्यों ? ठीक है  ना ....

-कुश्वंश

20 टिप्‍पणियां:

  1. आओ एक बार फिर तलाश लें
    वही जमीन
    वही तारों भरा आकाश

    bahut sunder...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत बहुत बधाई ||

    जवाब देंहटाएं
  3. आओ एक बार फिर तलाश लें
    वही जमीन
    वही तारों भरा आकाश....
    वाह! बहुत बढ़िया प्रस्तुति...
    सादर...

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  4. कुछ 'यादें' बहुत सुकून देती हैं ....???
    शुभकामनाएँ!

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  5. अति सुन्दर ..सम्भावना संसार ...बनी रहती है आस..

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  6. कोमल भावों को समेटे अच्छी प्रस्तुति

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  7. आओ एक बार फिर तलाश लें
    वही जमीन
    वही तारों भरा आकाश
    वही चाँद सितारे तोड़ लाने की बात
    वही अपनी ही श्वांशों से अन्विज्ञ
    संभावना संसार
    वही मधुप-मधु
    क्यों ? ठीक है ना ....
    bahut hi badhiyaa

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  8. आह! बहुत सुन्दर चाहत है।

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  9. यादें हमेशा वर्तमान से ज्यादा सुहानी लगती हैं ।
    कोमल अहसास लिए सुन्दर रचना ।

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  10. बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  11. आओ एक बार फिर तलाश लें
    वही जमीन
    वही तारों भरा आकाश
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  12. बहुत सुन्दर लिखा है आपने, बधाई हो !!

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  13. बहुत ही खूबसूरत पोस्ट!

    सादर

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  14. सुनीता जी ने चहरे से आपको दलीपकुमार बताया
    पर कविता से तो आप गुलजार लगते हैं कुश्वंशजी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

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  15. प्यार के
    मनुहार के
    तुम्हारे मुह फेरने के
    भाग कर , पास आने के
    परदे की ओट से मुस्कुराने के
    तुम्हारे स्कूल के सामने इंतज़ार के
    शहर के दुसरे कोने में
    बने पार्क की बेंच में
    धुंधलके में भी कुछ और ठहर जाने के

    Wah !!! kya baat hai !!!

    www.poeticprakash.com

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  16. सुंदर बीती यादें जीने की ख्वाइश ....
    बहुत सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें.

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  17. Har mann ki aapbeeti.. prem ki umar sach me badi chhoti...

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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