नारी आज भी कमजोर और पराधीन
क्यों ?
प्रश्न नारी की अस्मिता का नहीं
अबला घोषित करने का है
अपना जेहन टटोलो
और इस झूठ को
समझने ही कोशिश करो
समझ जाओ तो
जानने की कोशिश करो
क्यों ?
कोख से शुरू होकर
स्तन-पान और
कंधे से चिपक कर
अगूठा चूसने की प्रक्रिया तक
किसी नारी को पुरुष की आवश्यकता नहीं
पुरुष को होती है
और फिर सौंदर्य की अठखेलियों से
वंश चलाने की पौराणिक प्रक्रिया तक
विस्वास की पराकाष्ठा के बीच
पुरुष ने नारी से ही तो चाहा है
सब कुछ
देने के नाम पर
दिया क्या है
अकेली राह में मिल जाने पर
कार में खीच
बलात्कार
और लावारिस फेकने की परिणति
पैसे की भूख में
केरोसीन से धधकता जिस्म
या फिर
तंदूर में पके टुकड़े
सब कुछ अबला बनाने के ही तो निशाँ हैं
अबला कहो
प्रयोग करो
इज्ज़त और समाज के नाम पर
जिस्म पर शोध करो
मगर उठ खडी हुयी स्त्री
अब बिलकुल प्रयोग के लिए तैयार नहीं
अब जिसे जरूरत हो वो
हमारे कदम से कदम मिलाये
वो न अब जलेगी
न तंदूर में पकेगी और न ही
बलात्कार पर रुशवा होगी
शायद बदलने की आहट
सुनायी दे रही हो तुम्हें
अगर नहीं तो
किसी भ्रम में जी रहे हो तुम
उससे बाहर निकलो
और आस पास परवर्तित हो गयी हवाओं को पहचानो
तुम्हे अपनी मांद
दिखने लगे शायद
और जो हवाओं के साथ लय में हो
उनके संगीत की झंकार
सुनें भी
महसूस भी करे.
-कुश्वंश
आपकी पोस्ट की हलचल आज (09/10/2011को) यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंसवाल उठाती रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
नारी के अस्तित्व को समझने और समझाने की कोशिश.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
नारी पक्ष में सशक्त विचार ।
जवाब देंहटाएंपुरुष प्रधान समाज को सोचना ही पड़ेगा ।
नारी कमज़ोर नहीं , कमज़ोर होना उसे मनवाया जाता है और यह सिलसिला कभी बन्द नहीं होगा ....
जवाब देंहटाएंउसकी कमजोरी में ही सब अपनी इज्ज़त बाँध देते हैं
विडम्बना है
जवाब देंहटाएंकार में खीच
जवाब देंहटाएंबलात्कार
और लावारिस फेकने की परिणति
पैसे की भूख में
केरोसीन से धधकता जिस्म
या फिर
तंदूर में पके टुकड़े
सब कुछ अबला बनाने के ही तो निशाँ हैं
बधाई ||
हमारे देश में नारी के सम्मान की सुदृढ़ परम्परा रही है, वर्तमान में कुछ क्षीणता आई है। आशा करें कि यह परम्परा पुनः सशक्त होगी।
जवाब देंहटाएंnaari kamjor nahi ..yah desh nariyon ke shurya gathaon se bhara hai..per har vyaktitav ka saundarya kuch seemaon me bandha hota hai..maryaada sabke liye hai..sirf naariyon ki nahi yah dash purush ki bhi hai..maa ke roop me naari ne hi sanskar diya hain..uske sanskaar dene ki adbhut kshmata me bhi sambhtah kami aayi hai isliye santatiyan marg se bhramit ho rahi hain..aaurat ko aage badhna to hai per apne mulyon me bhi bachav ; jiske liye wah jaani jaati thi..karna hoga..aadmi ka baccha insaan maaon ki kripa se hi banta hai..aaurton ne aaurat se vikash ki hod me kintne short cut apnaaye haon jara un per use swyam bhi bichaar karna hoga..
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन... आद रश्मिप्रभा जी की बातों से पूर्णतया सहमत...
जवाब देंहटाएंसादर...
Sach, kadva, ganda sach. Han ye paristhiti badal rahi hai aur ese badalna
जवाब देंहटाएंMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
. hi chahiye.
एक गुनगुनाता हुआ शर्मिला सा सुकोमल नारीमन, यदि चुप हो जाय तो उसका मनुहार होना चाहिए. स्तुत्य है, इस व्यथा निवारण का यह पुरुष प्रयास. सम्प्रेषण, प्रेक्षण की यह कोपविद्या, नारी के लिए है, सुगम, सरल; साथ ही लाता है मनुहार का अवसर. परन्तु ....एक चुप हो चुके पुरुष मन को, मानाने और गुदगुदाने का, समझने और समझाने का नारी प्रयास क्या अर्थहीन है? औचित्यहीन है? और क्यों? सामंजस्य और भावसंतुलन के स्थान पर उसे पाषाण पुरुषकी संज्ञा; आखिर है क्या? क्रूरता या कायरता? कौन करेगा निर्णय? किसने देखा है - पाषाण पुरुष की बेजान चुप्पी में, उसके गहन गाम्भीर्य शान्ति में वल्लियों उठ रहे कलोल और कोलाहल को? शान्ति सागर में हिलोरें मार रहे ज्वार- भाटा को? क्या यह अवमूल्यन नहीं,चेतना का, बौद्धिकता का? चिंतन की वेदना का? संवेदना की स्वतन्त्रता का?
जवाब देंहटाएंkyaa aap ki yae kavita mae naari kavita blog par atithi kavi kae rup me repost kar saktee hun
जवाब देंहटाएंemail par suchit kar dae
एक गहन चिन्तन के बाद निकली एक यथार्थपरक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंरचना जी आप अगर इस पोस्ट को नारी ब्लॉग पर पुनर्प्रस्तुत करना चाहती है तो आप कर सकती है आभार. कविता का अर्थ तभी सार्थक होगा जब लोग पढेंगे .
जवाब देंहटाएंनारी कभी कमजोर नहीं थी लेकिन उसे हमारे पुरुष प्रधान समाज ने कमजोर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आज नारी ने फिर अपनी शक्ति को पहचान लिया है..बहुत सारगर्भित सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसत्य कहा...
जवाब देंहटाएंएकदम सत्य...
बेस्ट ऑफ़ 2011
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच 790
पर आपकी एक उत्कृष्ट रचना है |
charchamanch.blogspot.com