महेश कुशवंश

7 अक्तूबर 2011

रावण..जला रावण




कल फिर धू..धू कर जला रावण

मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने
कल फिर बुराइयों के प्रतीक को
तीरों से बींध दिया
दर्द से बोझिल विभीषण
वही पास खड़े थे
नाभि में अमृत की बात बताते
वो बात जो जगत के स्वामी को
मालूम तो थी
मगर घर का भेदी लंका .....
कहावत भी तो सिद्ध करनी थी
जगत को
मर्यादा का पाठ भी तो पढ़ाना था
राम ने प्रत्येक वर्ष
रावन मारे
और हमने बड़े धूम धाम से
उन्हें जलाया
शायद इसी लिए
रावन कभी नहीं मरा
और हमारे आपके जेहन में
हमेशा रहा जीवित
धूम धाम से जलना
एक दंड की परिणति मेला
कौन खोना चाहता है
उसे अच्छा लगता था
मेले में
बच्चों के शोर के मध्य
आँखे मटकाना ,
गरजना
हूंकार भरना
और कौन नहीं चाहता
शाही मौत
भले ही हो नकारात्मक
रावण की तरह
जो जलने के बाद भी
प्रतिवर्ष जले
फिर जले
मगर
कभी ऩा जले 
और पुनः उठ खड़ा हो
संपूर्ण रावनत्व  के साथ
प्रतिदिन.

-kushwansh    
(चित्र आकांछा जी के शब्दशिखर से साभार)

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||

    बहुत बहुत बधाई ||

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  2. बधाई !
    और कौन नहीं चाहता
    शाही मौत ....!!!सुंदर प्रस्तुति|

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  3. एक दंड की परिणति मेला
    कौन खोना चाहता है
    उसे अच्छा लगता था
    मेले में
    बच्चों के शोर के मध्य
    आँखे मटकाना ,
    गरजना
    हूंकार भरना
    और कौन नहीं चाहता
    शाही मौत

    वाह... ये भी एक अनोखी सोच है, सही भी है... :)

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  4. क्योंकि वह हर बार कहना चाहता है - मैं गलत न था न हूँ

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  5. बेचारा रावण !
    सिर्फ एक बुराई की वज़ह से न जिन्दा है , न मर पाता है ।
    जाने कब मुक्ति मिलेगी ?

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  6. यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !

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  7. यथार्थपरक सार्थक रचना....
    विजयादशमी की सादर बधाई....

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  8. sachmuch raawan bana hi tha thaa saahi maut ke liye raam ke hathon ki maut ...par ab raawan ban gayaa raam naa bane,,

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  9. सत्य को उदघाटित करती सुन्दर रचना।

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  10. wo ravan tho mar gaya ..........par ham sabke man ka ravan kab marega
    aapki nayi soch ko salam

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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