हमने कोई
बड़ी बात की गुजारिस नहीं की
ना ही कोई
ना हो सकने वाली बात
हमने तो सामने ला दी वो
जो
तुम्हारे मन में छिपी बैठी थी
सदियों से
और तुम लाचार
कभी रिश्तों से
कभी रिश्तों को निबाहने की कशमकश से
स्वयं पर चढाते रहे
मुखौटे दर मुखौटे
और जब बदरंग हो गयी तुम्हारी पहचान
तो तलासने लगे
इसका-उसका कंधा
जिसके आगोश में सर रखकर रो सको
ऐसे कि
सिसकियाँ भी सुन न सके कोई
आखिर तुम्हे मिल गया कंधा
और उस कंधे को तुमने
नदी बना डाला
जिसका कोई बाँध ही न हो
ये जानते हुए कि
ये नदी बहती है उल्टी
इसका नहीं है कोई भी समुद्र
फिर भी तुमने भरोसा किया
काश तुम्हारा भरोसा
तुम्हारे अंतर्मन की
परिणति हो
तुम्हारे हर संकल्प की
सद्गति हो.
-कुश्वंश
(चित्र गूगल से साभार )
ना ही कोई
ना हो सकने वाली बात
हमने तो सामने ला दी वो
जो
तुम्हारे मन में छिपी बैठी थी
सदियों से
और तुम लाचार
कभी रिश्तों से
कभी रिश्तों को निबाहने की कशमकश से
स्वयं पर चढाते रहे
मुखौटे दर मुखौटे
और जब बदरंग हो गयी तुम्हारी पहचान
तो तलासने लगे
इसका-उसका कंधा
जिसके आगोश में सर रखकर रो सको
ऐसे कि
सिसकियाँ भी सुन न सके कोई
आखिर तुम्हे मिल गया कंधा
और उस कंधे को तुमने
नदी बना डाला
जिसका कोई बाँध ही न हो
ये जानते हुए कि
ये नदी बहती है उल्टी
इसका नहीं है कोई भी समुद्र
फिर भी तुमने भरोसा किया
काश तुम्हारा भरोसा
तुम्हारे अंतर्मन की
परिणति हो
तुम्हारे हर संकल्प की
सद्गति हो.
-कुश्वंश
(चित्र गूगल से साभार )
vaah vaah bahut khub .....
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
एक कंधे की तलाश तो सभी को रहती है।
जवाब देंहटाएंप्रभावी कविता।
सार्थक पोस्ट....
जवाब देंहटाएंकाश तुम्हारा भरोसा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे अंतर्मन की
परिणति हो
तुम्हारे हर संकल्प की
सद्गति हो.
bas kaash ...
अंतर मन की व्यथा को परिभाषित करती खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुश्वंश जी अभिवादन ..सार्थक रचना सुन्दर मूल भाव ..कब ये गंगा सीधी बहना शुरू करेगी ....सुन्दर पंक्तियाँ सन्देश देती
जवाब देंहटाएंआभार
ये जानते हुए कि
ये नदी बहती है उल्टी
इसका नहीं है कोई भी समुद्र
फिर भी तुमने भरोसा किया
काश तुम्हारा भरोसा
तुम्हारे अंतर्मन की
परिणति हो
तुम्हारे हर संकल्प की
सद्गति हो.
क्या बात है ,प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंvery nice creation..
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंकभी रिश्तों को निबाहने की कशमकश से
जवाब देंहटाएंस्वयं पर चढाते रहे
मुखौटे दर मुखौटे
और जब बदरंग हो गयी तुम्हारी पहचान
तो तलासने लगे
इसका-उसका कंधा....
सार्थक, चिंतनशील कविता....
सादर...
मन के भाव खूबसूरती से लिखे हैं ..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअंतर मन की व्यथा को परिभाषित करती खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंमर्म की गंगोत्री से निकली नदी इसी काश पर आकर ठहर जाती है.भावमयी कृति.
जवाब देंहटाएंBahut gahri Bhivaykti hai is racna men...mere blog par aane ka aabhar...
जवाब देंहटाएं(han dard ya kasha soti hi rahti to kitna acha hota...or re jeevan men na hota to jeevan kuch or hi hota..)