इन चौसठ सालों में
संविधान बनाया,
संविधान के प्रति
दिखाई निष्ठा,
संशोधन किया,
जोड़ा घटाया, मगर मूल रूप से कुछ नहीं बदला,
न संविधान,न उसे मानने वाले ,
मौलिक अधिकारों के प्रति
रहे सतर्क रात-दिन,
कर्त्तव्य निभाने को
झाकने लगे बगलें,
तुम,
तुम,
सिर्फ तुम क्यों नहीं निभाते
मैं सिर्फ बजाता हूँ गाल ,
मैं भ्रस्ताचारी नहीं
रामदेव के भगवा में भीकोई भ्रस्ताचारी नहीं था ,
अन्ना के सफ़ेद रंग में भी नहीं है कोई,
प्रश्न ये है ?
कौन है जिसके खिलाफ है आन्दोलन
बेईमान कौन है ?
सरकारी दफ़्तरो में कैसे पनपता है भ्रटाचार
हमारे आपके रहते,
गाय नहीं मिलाती
दूध में पानी,
नकली दवाये
बेचारे प्राक्रतिक लवण बनाते है क्या ?
खाकी की जेब में
अपने आप नहीं भर जाते रुपये,
बिजली का मीटर बिना हमारी मर्जी के
नहीं घूमता पीछे,
कत्ल के केस से
ऐसे ही नहीं छूट जाते हम,
वकील यू ही सुबूत नहीं जुटाते ,
चारो तरफ़ हून्कार
मै हूँ अन्ना
तो भ्रस्ताचारी कौन ?
कहीं हमारे आपके अन्दर छिपा डर तो नहीं,
जिसे छिपाए रखकर हम सरकार की तरफ ताने खडे है प्रत्यंचा
सरकार के बडे दोष
आपके निरंकुश कर्मो कोछोटा कर देते है क्या ?
जन लोकपाल आना ही चाहिए,
साथ ही जरूरी है
स्वयम का लोकपाल दिल,
क्या आप इसके लिये भी हून्कार भरेगे ?
और,
अपने अन्दर झाक कर,और,
टटोलकर,
अन्ना की
सही अर्थो में
आवाज़ बनेगे.
यदि नहीं तो
हालात ना बदलने का दोष,
सरकार का ही नहीं
आपका भी होगा .......
-कुश्वंश
जन लोकपाल आना चाहिए
जवाब देंहटाएंसाथ ही जरूरी है
स्वयम लोकपाल दिल
क्या आप इसके लिये
भी हून्कार भरेगे
अपने अन्दर झाक कर
अन्ना की
सही अर्थो में
आवाज़ बनेगे.
सार्थक बात उठायी है ..अच्छी प्रस्तुति ...
सम्यक और सुंदर भावों से सजी रचना आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंban chuke awaaz
जवाब देंहटाएंआस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती हुई बेहतरीन रचना ...
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती हुई रचना, अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंजरूरी है स्वयं का लोकपाल दिल...
जवाब देंहटाएंवाह, एकदम सही बात ।