महेश कुशवंश

9 अगस्त 2011

उसे क्या नाम दूं


सुबह जब सूरज
लालिमा लिए होता है 
पूरब में  बोल रहे होते है
पंछी
सूरज की किरनें जमीन पर फैलने से पहले
रसोई में होने लगती है
बर्तनों के खटकने की आवाज़ 
पानी गिरने की छरछराहट
फिर जलने लगती गैस
बनती है दो कप चाय
तब तक मैं उठ जाता हूँ
वो भागती है ऊपर
शुभम का बस्ता
मेज पर बिखरी किताबें  
स्कूल की ड्रेस
टूटी पेंसिल छीलने की धुन
जूतों में पालिश ,
सूंघकर फेंकती मोज़े
कसती है कमर पर  की बेल्ट
बालों में पानी के बाद कंघा
वो भागती है किचिन मैं
लंच बॉक्स
आलू के परांठे बस्ते में बंद
बिखरे बाल
चेहरे पर बिखर आती हैं  लटें
मैं हटाने लगता हूँ
वो मुझे थमा देती है
स्कूल बस के लिए
शुभम की उंगली  
मेरे लौटने तक
भीगी लटों मैं
हो जाती है वो
चौदहवी का चाँद
मैं गाने लगता हूँ
न झटको जुल्फ से पानी ..ये मोती ...
वो शर्मा जाती है
तैयार करती है नास्ता
मैं अखबार पढ़ रहा होता हूँ
बेटी की आवाज़
मम्मी  ब्रेड नहीं खानी है
ठीक है..
उत्तपम बनाती हूँ
मुझे भी
मैं अपनी फेंकता हूँ 
वो मुस्कुरा देती है
घड़ी मैं साढे नौ हैं
मेरे नहाकर आने तक
टेबल पर संपूर्ण खाना लग जाता है
माँ  जी नास्ता तैयार है
वो.. देती है माँ को आवाज़ ...
खाने के साथ ही
टिफिन भी रेडी
रूमाल लिया की नहीं ...
मुस्कुरा कर वो
गेट खोलने चल देती है
आफिस से वापस आने तक
सारे घर को व्यवस्थित करना
आने जाने वालों को
उचित अनुचित ,यथोचित  पाठ पढ़ाना
घंटी बजाकर आने वाले सलेस्मैनों को 
छठी का दूध याद कराना
और
मेरे लौटने पर
कार की ध्वनि पर गेट पर आना
कभी
कुछ भी नहीं भूलती...
शाम का नास्ता
फिर खाना
फिर वही आवाज़.. माँ ... जी
शुभम को सुलाना
तब तक मुझे नींद आने लगती है
वो कब आकर 
अप्रतिम  सुन्दरी की तरह
मेरे पास बैठ  जाती है
मैं जान ही नहीं पाता
वो.. कब सो जाती है
जब आँख खुलती  है
मैं चुपचाप उसे निहारता हूँ
और देखता हूँ अपलक
सोचता हूँ
उसे क्या नाम दूं
प्रथ्वी ...
आकाश ....
सूरज.....
चाँद-तारे ......
या फिर
ब्रम्हांड ....
सारी दुनियां समेट  ली हो जिसने
वो सिर्फ
पत्नी तो नहीं हो सकती
आप ही नाम दो..
शायद आप दे सकें.............................?

-कुश्वंश



19 टिप्‍पणियां:

  1. सारी दुनियां समेट ली हो जिसने
    वो सिर्फ
    पत्नी तो नहीं हो सकती
    आप ही नाम दो..
    शायद आप दे सकें.............................?

    बहुत ही गहरे अहसासों से भरी रचना,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  2. इस प्यार को क्या नाम दूँ बहुत ही सही सवाल किया आपने

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  3. n jane uske kitne hi rup hai ........sirf patni nahi. bahut sunder rachna .....

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  4. उनके बिना हमारा अस्तित्व ही क्या है , मानव स्वरुप भगवन शिव ने अर्धनारीश्वर रूप में ही सही पारिभाषित किया है !
    शुभकामनायें

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  5. सारी दुनियां समेट ली हो जिसने
    वो सिर्फ
    पत्नी तो नहीं हो सकती
    आप ही नाम दो..
    शायद आप दे सकें.............................?
    यह हर किसी के लिए कठिन है ....क्या कहें उसे उसके बिना अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती ....गहन भावों को संप्रेषित करती रचना ....आपका आभार

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  6. आदरणीय कुश्वंश जी नाम तो मैं नहीं दे सकता, किन्तु मानना पड़ेगा|
    बहुत भावमयी कविता...

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  7. कविता, ह्रदय से निकल कर ह्रदय
    तक पहुँचती है, आपकी रचना ने
    यह काम बड़े सुन्दर ढंग से किया है.
    अति सुन्दर रचना.
    आनन्द विश्वास.

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  8. एक गृहणी की दिनचर्या का बहुत सुन्दर कवितामयी वर्णन पढ़कर अहसास हुआ कितना मुश्किल होता है घर को सही से चलाना . ये बात हम मर्द शायद कभी न समझ पायें .
    लेकिन सुबह सुबह रोमांटिक मूढ़ देखकर हम भी रोमांचित हो गए .

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  9. इतनी प्यारे मन के भावो को कितनी सरलता से लिख दिया आपने .....खुश नसीब हैं आप जो अभी आपको ये सब सुनाई और आपके सामने दिखाई दे रहा है ....जब बच्चे बडे हो कर अपनी पढाई के लिए खुद से दूर चले जाते है तो ...ये दिन ...बहुत याद आते है ...दोस्त
    मन के एहसास और प्यार का कोई नाम नहीं होता ....आप इनके लिए किसी नाम की तलाश ना ही करे ...आभार

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  10. वाह ...बहुत खूब कहा है ।

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  11. खूबसूरत भावों को समेटे हाँ उसके कई रूप हैं जो हर रूप को बहुत खूबसूरती से निभाती है |
    बहुत सुन्दर रचना |

    जवाब देंहटाएं
  12. मैं चुपचाप उसे निहारता हूँ
    और देखता हूँ अपलक
    सोचता हूँ
    उसे क्या नाम दूं
    प्रथ्वी ...
    आकाश ....
    सूरज.....
    चाँद-तारे ......
    या फिर
    ब्रम्हांड ....
    सारी दुनियां समेट ली हो जिसने
    वो सिर्फ
    पत्नी तो नहीं हो सकती
    आप ही नाम दो..
    शायद आप दे सकें.

    komal bhavnaon se wot-prot, hardaya isparshi rachana.aapka bahut2 aabhar.

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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