कैसे होता है
कोई हृदय संवेदनहीन
कैसे पड़ जाती है खरोंचे
रक्त के रिसने की हद तक
और हम पहुच जाते है
प्रागैतिहासिक युग में
आधुनिक युग के हथियारों के साथ
और चाक कर देते हैं
हृदायिक संवेदनाओं के निलय
रिश्तों के अर्थ
होने लगते है बेमानी
निकृष्टतम शब्दों की
खुल जाती है
दुर्गन्धयुक्त पोटली
और कर देते है हम परिवेश को
दूषित-प्रदूषित
चीत्कार करने लगती है
संस्कारों की हमारी संस्कृति
क्यों नहीं समझ पाते
कुलीन होने का अर्थ
सभ्य-अशभ्य का मर्म
शिक्षा कितनी और कैसी होनी चाहिए
उठने लगते है प्रश्न
साहित्य के आयाम क्या होने चाहिए
और कैसे
संस्कारित होने के लिए जरूरी है साहित्य
हर गली कूचे में
नहीं हो सकते खाकी....
मगर हर घर में
साहित्य हो सकता है
अच्छे बुरे सोच को
बेहतर तरीके से समझाने वाली
पुस्तके हो सकती है
और हो सकते है
गीली मिट्टी को आकार देने वाले
शिक्षित ,संस्कारित परिजन
तभी... शायद...
गली कूचे को प्रदूषित करते शब्द
कुरुक्षेत्र की ध्वनियों की तरह
नेपथ्य में खो जाये ..
क्या ये प्रयास जरूरी नहीं ?
- कुश्वंश
बिलकुल सही कहा आपने प्रयास जरुरी है...
जवाब देंहटाएंमगर हर घर में
जवाब देंहटाएंसाहित्य हो सकता है
अच्छे बुरे सोच को
बेहतर तरीके से समझाने वाली
पुस्तके हो सकती है
बेहतरीन प्रस्तुति.
मन अभीभूत हो गया पढकर.
आभार.
बिना प्रयास तो कुछ नहीं होता....
जवाब देंहटाएंतभी... शायद...
जवाब देंहटाएंगली कूचे को प्रदूषित करते शब्द
कुरुक्षेत्र की ध्वनियों की तरह
नेपथ्य में खो जाये ..
क्या ये प्रयास जरूरी नहीं ?
उम्दा सोच.... सच में प्रयास ज़रूरी है...
चाक कर देते हैं
जवाब देंहटाएंहृदायिक संवेदनाओं के निलय
रिश्तों के अर्थ
होने लगते है बेमानी
निकृष्टतम शब्दों की
खुल जाती है
दुर्गन्धयुक्त पोटली
और कर देते है हम परिवेश को
दूषित-प्रदूषित.... bahut hi gahre bhaw
bahut umdaa prastuti.aabhar.
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति में गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंहर गली कूचे में
जवाब देंहटाएंनहीं हो सकते खाकी....
मगर हर घर में
साहित्य हो सकता है
अच्छे बुरे सोच को
बेहतर तरीके से समझाने वाली
पुस्तके हो सकती है
और हो सकते है
गीली मिट्टी को आकार देने वाले
शिक्षित ,संस्कारित परिजन.....
Rightly stated ! We need to implement such a beautiful suggestion ! Very inspiring and need of the hour.
.
गीली मिट्टी को आकार देने वाले
जवाब देंहटाएंशिक्षित ,संस्कारित परिजन
तभी... शायद...
गली कूचे को प्रदूषित करते शब्द
कुरुक्षेत्र की ध्वनियों की तरह
नेपथ्य में खो जाये ..
क्या ये प्रयास जरूरी नहीं ?
बिलकुल सही कह रहे हैं सर प्रयास किए बिना हम कुछ प नहीं सकते।
सादर
कुश्वंश जी,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ... कहीं-कहीं आप आक्रोश को दबाने की झलक भी दे रहे हैं . 'खाकी' ... के आगे सफ़ेद स्याही से लिखा 'कुत्ते' शब्द भी पढ़ गया.
आपकी शैली घोर साहित्यिक है मतलब 'शालीन'
बिल्कुल जरूरी है…………शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंयही प्रयास ज़रूरी है । लेकिन अफ़सोस दिन पर दिन ह्रास होता जा रहा है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संदेश को समेटे हुये है आपकी रचना..
जवाब देंहटाएंऔर चाक कर देते हैं
जवाब देंहटाएंहृदायिक संवेदनाओं के निलय
रिश्तों के अर्थ
होने लगते है बेमानी...
शानदार ढंग से अभिव्यक्त सच्ची बात...
सादर...
बहुत आवश्यक है यह ....हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
जवाब देंहटाएंप्रयास जरुरी है...
हर गली कूचे में
जवाब देंहटाएंनहीं हो सकते खाकी
मगर हर घर में
साहित्य हो सकता है
अच्छे बुरे सोच को
बेहतर तरीके से समझाने वाली
पुस्तके हो सकती है
गहन भावनाओं और अर्थों से सजी एक सुंदर कविता।
कल 09/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
उम्दा सोच
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
संस्कारित होने के लिए जरूरी है साहित्य
जवाब देंहटाएंहर गली कूचे में
नहीं हो सकते खाकी....
मगर हर घर में
साहित्य हो सकता है
बहुत सार्थक और अच्छी सोच ....सुन्दर कविता ......
गली कूचे को प्रदूषित करते शब्द
जवाब देंहटाएंकुरुक्षेत्र की ध्वनियों की तरह
नेपथ्य में खो जाये ..
क्या ये प्रयास जरूरी नहीं ?
सच में इस ओर कोई सार्थक पहल होनी चाहिये. अच्छी भावनाओ का प्रवाह करती सी लगी ये कविता.
बिल्कुल सच्ची बात कही है आपने,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
sachchi...sateek baat kah dii aapne...
जवाब देंहटाएंऔर हो सकते है
जवाब देंहटाएंगीली मिट्टी को आकार देने वाले
शिक्षित ,संस्कारित परिजन
तभी... शायद...
गली कूचे को प्रदूषित करते शब्द
कुरुक्षेत्र की ध्वनियों की तरह
नेपथ्य में खो जाये ..
क्या ये प्रयास जरूरी नहीं ?
सार्थक लेखन .. सच ही यह प्रयास ज़रुरी है ..अच्छी अभिव्यक्ति
सही कहा ...प्रयास तो परम आवश्यक है
जवाब देंहटाएंमन को झंकृत कर देने वाली रचना.
जवाब देंहटाएंसधुवाद
आनन्द विश्वास