महेश कुशवंश

20 जुलाई 2011

मेरा.... धर्म,जाति, आत्मा



कल सड़क पर
मूसलाधार बारिश में
चिंदी - चिंदी हुए कपड़ों में
इधर-उधर बिखरे
इंसानी अंग प्रत्यंग देखकर
मर गया
मेरा धर्म...
हजारों सहमे, बदहवास और
निचुड़ चुके रक्त से आभासी चेहरे 
फटी ऑंखें लिए गिरते पड़ते
प्रियजनों को तलाशते
मासूमों, निर्दोषों को देखकर
अपग हो गयी
मेरी जाति...
जली-अधजली झुलसी
नन्ही-नन्ही उँगलियाँ
उँगलियों को सीने से चिपकाता 
चीत्कार करता मातृत्व
सुहाग के रक्त सजा वैधव्य देखकर
नस्ट हो गयी
कभी न नस्ट होने वाली
" आत्मा "
और एक आत्माहीन से
कोई क्या अपेक्षायें कर सकता है ?
कितनी अपेक्षायें कर सकता है
तुम्ही बताओ ..


-कुश्वंश

27 टिप्‍पणियां:

  1. 'संवेदनहीनता' पर झकझोर देने वाली रचना है आपकी...

    कुश्वंश जी,
    जिसने हादसों की पीड़ा को जिया हो ... जिसने अपनी कल्पना से परपीड़ा को महूस किया हो... वही इस तरह की अश्रुसिक्त अनुभूति की वर्षा कर सकता है.

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  2. doosron ki peeda ko aatsaat karne par upje aantrik bhaavon ko bkhoobi prastut kiya hai.bahut achchi kavita.badhaai.

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  3. कल सड़क पर
    मूसलाधार बारिश में
    चिंदी - चिंदी हुए कपड़ों में
    इधर-उधर बिखरे
    इंसानी अंग प्रत्यंग देखकर
    मर गया
    मेरा धर्म...


    मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक रचना....

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  4. " आत्मा "
    और एक आत्माहीन से
    कोई क्या अपेक्छायें कर सकता है ?
    कितनी अपेक्छायें कर सकता है

    गहन भावों का समावेश ...।

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  5. बिकुल हिलाकर, झकझोर कर रख देने वाली रचना...
    संवेदनहीनता की भी कोई हद होती है...

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  6. कल सड़क पर
    मूसलाधार बारिश में
    चिंदी - चिंदी हुए कपड़ों में
    इधर-उधर बिखरे
    इंसानी अंग प्रत्यंग देखकर
    मर गया
    मेरा धर्म...

    भावनाओं को उद्वेलित करती बहुत मार्मिक प्रस्तुति..कहाँ गुम हो गयीं हैं हमारी संवेदनशीलता?

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  7. सच कह रही है आपकी रचना...आत्माविहीन, संवेदनहीन से क्या कोई अपेक्षा कर सकता है...
    गहन भाव... मर्मस्पर्शी रचना...

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  8. sir namaskaar,

    har kisi ko sochne par majboor karti rachna......

    insaani jazbaaton ko jaga dene wali post....

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  9. बहुत संवेदनशील रचना ... इंसान के पास न धर्म बचा है न जाति और न ही आत्मा ... झकझोर देने वाली रचना

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  10. बहुत संवेदनशील ,झकझोर देने वाली रचना....

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  11. ह्रदय विदारक....

    मन चित्कार उठा......

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  12. मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक रचना....

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  13. इतना मार्मिक दृश्य देखकर तो निश्चय ही आत्मा भी क्लांत हो जायेगी !

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  14. Edit the word - " apekshaayein " by cut pasting from here ...

    ----

    अपेक्षायें.

    .

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  15. bahut sahi likha aapne....
    kaash sab log milkar aantak ko door kar saken

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  16. धन्यवाद दिव्या जी , मै लिख ही नहीं पाया सही शब्द, रोमन में. आप यही भावना बनाये रखे आभार.

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  17. बहुत संवेदनशील रचना....आभार.

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  18. व्यथित करती एक सम्वेदनशील रचना |
    आज की रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  19. और एक आत्माहीन से
    कोई क्या अपेक्षायें कर सकता है ?
    कितनी अपेक्षायें कर सकता है
    तुम्ही बताओ ..

    सही कहा आपने कि ऐसी नृशंसता बरतने वाले आत्माहीन ही हो सकते हैं...
    वर्तमान दशा पर सटीक रचना....

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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