18 जुलाई 2011
हमें उबार लेना प्रभू
जब कही कोई
रास्ता ही न हो
हो भी तो
मंजिल न दिखे
दिखे भी तो
डगमगानें लगें पैर
सहारे को उठे स्वार्थी हाँथ
हांथों में हो
अद्रश्य यातनाओं की कीलें
संवेदनाओं से रिक्त हो रहा हो हृदय
हृदय में बह रहा हो
पाशविक रक्त
और चूसने को खड़ी हों
अनगिनित व्यवस्थाएं
तब तुम आना
और हमें उबार लेना
तुम्हारा तीसरा नेत्र ही
अब दे सकता है समाधान
लौटा सकता है पृथ्वी पर
निर्मल गंगा
प्रभू इसे भागीरथी प्रयास समझ
अपनी जटाएं खोल देना
और हमारी छिन्न-भिन्न होती आकृति को
पुनः व्यवस्थित कर देना.
-कुश्वंश
(सावन के सोमवार को ये सौवीं (100 ) अनुभूति परम-प्रभू को समर्पित)
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बहुत अच्छा लिखा है सर.
जवाब देंहटाएंसौवीं पोस्ट की हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
शतक पूरा करने पर बहुत - बहुत बधाई बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आहवान्।
जवाब देंहटाएं१०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई...उम्दा रचना.....
जवाब देंहटाएं१०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई... बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंcongratulation...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत वंदना ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं१०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई...
तुम्हारा तीसरा नेत्र ही
जवाब देंहटाएंअब दे सकता है समाधान
लौटा सकता है पृथ्वी पर
निर्मल गंगा ....
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..हार्दिक शुभकामनायें !
सटीक आह्वान
जवाब देंहटाएंसभी सहृदय शुभकामनाओ ने अभिभूत कर दिया . सच कहा है हमारी संस्कृति ही हमें महान कहलाने का हक देती है सारे विश्व में . मैं आभारी हूँ और सदैव रहूगा.
जवाब देंहटाएंpahli baar pad raha hun aapko.....bahut achha laga...
जवाब देंहटाएं1०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई..
जवाब देंहटाएंश्रावण मास की हार्दिक शुभकामनायें !
आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
सौवीं रचना के लिए बधाई स्वीकार करे ...शानदार दिन शानदार पोस्ट ..
जवाब देंहटाएंसौवीं पोस्ट की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंसौवीं रचना के लिए बधाई ,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सौ वीं पोस्ट-शुभकामना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रार्थना सबके मन की बात कह दी । सौ वी पोस्ट पर शुभ कामनाएँ ।
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