सफ़र अंत...........
बढ़ते रहे
गड़े हुए घुटने
बचपन के
ढोते रहे
बस्ते का बोझ
लड़कपन में
पढ़ते रहे
आहट सुगंध की
तरुणाई में
युवा हुए
बांधे थी हाँथ पाँव
रोजगारी
अभावों पर
सिसकते सम्बन्ध
चालीस वर्ष
पौढ़ हुए
बस गयी कही दूर
कलेजे की गंध
रक्त चुका
बोझ अब शरीर
सफ़र अंत .
-कुश्वंश
बहुत संक्षेप में जीवन यात्रा का सार बता दिया ! जीवन मरण का एक अंतहीन सिलसिला ! हृदयस्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
क्रमिक विकास यात्रा फिर
फिर कहीं दूर दुबारा -
यात्रा का सुन्दर चित्रण्।
जवाब देंहटाएंअंदाज़ अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
जीवन चक्र का नया चित्र
जवाब देंहटाएंपुरे जीवन -चक्र को अपने में समेटती हुई रचना ... प्रस्तुति का अंदाज बहुत ही अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंinhi kuch avasthaon me jeevan ki kahani poorn ho jaati hai.bahut achcha likha Kushvansh ji.
जवाब देंहटाएंयात्रा का सुंदर चित्रण...
जवाब देंहटाएंजीवन मरण का सारा चित्रण कर डाला, सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यात्रा का सुन्दर चित्रण् । बहुत भावो को समेटा है………शानदार
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