महेश कुशवंश

15 जुलाई 2011

भीचो मुट्ठी

फिर बिखर गए
शरीर में कल तक जो जुड़े थे
हमारे टुकड़े
तुमने बेटा खोया
खोया ....
तुमने पति खोया
खोया ...
हम बटोरते रहे सड़क पर बिखरे
हाँथ, पैर, उँगलियाँ, नाखून
खून सने चेहरे
वो टटोलते रहे बाहरी हाँथ
नहीं मिलीं अपनी कोई गलतियाँ
गलतियाँ तो तुम्हारी है
तुम वहां गए ही क्यों
वार्निंग तो दी थी
घुसे है आतंकवादी कई शहरों में वारदात को
कैमरे बनाते रहे एक्स्क्लुसिव्व रिपोर्ट
पहले मैंने-पहले मैंने
फैलाते रहे सनसनी
रोते रहे घडियाली आंसू
साल भर में दो ही तो हुए
पाकिस्तान में तो रोज ही होते है
उन्हें कौन समझाए अमेरिका में फिर नहीं हुआ
एक बार हुआ तो घुस कर मारा
हम होगये नपुंशक
घुस आये को भी नहीं मार पाए सालों तक
वो जो रोज दिखता है पड़ोस में
हमें बताते रहे पुरानी है फोटो सालों पहले की
एक बात और ...
हम करोड़ों में है
हजारों है हमारे शहर
सब जगह नहीं रोक सकते बम.. खून
मजबूरी है बहाने दो
सोचो जिन से बाँध राखी थी उम्मीद
वो हमारे पीछे छिप गए
अब स्वयं भीचो मुट्ठी
करो संकलित प्रहार
बिना किसी सहायता की उम्मीद के
करो अमेरिका सा दिल, दिमाग और ज़ज्बा
तभी बचा सकते शरीर के कटते टुकड़े
समेट सकते हो उन्हें
जो बिखर गए सड़कों पर
लावारिस.


-कुश्वंश

14 टिप्‍पणियां:

  1. एक के बाद हादसे का इंतजार कीजिये यही है हमारी सरकार की नीति ....

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  2. खोलो मुट्ठी ,नोचो बाल
    अपने घर में हम बेहाल|

    न जाने कब तक ...???

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  3. कुश्वंश जी ,यही तो विडम्बना है .... अफ़सोस है कि संसद पर हमले के समय इन माननीयों को भी ऐसे ही छोड़ देना था ....
    बहुत अच्चा लिखा है आपने ..... आभार !

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  4. दर्दनाक हादसे की परतें खोलता बेहतरीन कटाक्ष है रचना में ।

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  5. पूरा दर्द समेटा हुआ है इन पंक्तियों में.
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  6. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
    सच हमारी सरकार नपुंसक ही है ||
    इन्हें ये कहते शर्म नहीं की ३१ महीने तक बचाया तो ||
    भैया देश को कब तक बचा रहे हो--अगली बार तो बेंच ही दोगे---
    है न --


    हर-हर बम-बम
    बम-बम धम-धम |

    थम-थम, गम-गम,
    हम-हम, नम-नम|

    शठ-शम शठ-शम
    व्यर्थम - व्यर्थम |

    दम-ख़म, बम-बम,
    तम-कम, हर-दम |

    समदन सम-सम,
    समरथ सब हम | समदन = युद्ध

    अनरथ कर कम
    चट-पट भर दम |

    भकभक जल यम
    मरदन मरहम ||
    राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |

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  7. अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ.....

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  8. मन के आग को जल्दी जल्दी उतार कर पन्नो पर रख दें...सुना है उन्हें यह हिंसा और विद्रोह फैलाना लगता है,इसलिए घोषित करने वाले हैं इसे दंडनीय अपराध....
    हर पल , हर तरह हम आम को मरने को यहाँ रहना है तैयार...

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  9. बहुत ही बढि़या कहा है आपने ।

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  10. कैमरे बनाते रहे एक्स्क्लुसिव्व रिपोर्ट
    पहले मैंने-पहले मैंने
    फैलाते रहे सनसनी
    रोते रहे घडियाली आंसू
    साल भर में दो ही तो हुए
    पाकिस्तान में तो रोज ही होते है
    उन्हें कौन समझाए अमेरिका में फिर नहीं हुआ
    एक बार हुआ तो घुस कर मारा
    हम होगये नपुंशक ......
    u nailed it right on head.... loved it.

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  11. आप मेरे ब्लॉग पर आये.मन अभिभूत हो गया आपके दर्शन व भावपूर्ण टिपण्णी से.बहुत बहुत आभार आपका.

    मुझे आपके ब्लॉग पर आकर विलक्षण अनुभूति हो रही है.कितना सार्थक व यथार्थ पर आधारित है आपका लेखन.
    अब स्वयं भीचो मुट्ठी
    करो संकलित प्रहार
    बिना किसी सहायता की उम्मीद के
    करो अमेरिका सा दिल, दिमाग और ज़ज्बा
    तभी बचा सकते शरीर के कटते टुकड़े
    समेट सकते हो उन्हें
    जो बिखर गए सड़कों पर
    लावारिस.

    आपके ये वचन प्रेरक लगे.

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  12. बेहतरीन कटाक्ष है रचना में...सत्‍य कहा है ...बेहतरीन भावों के साथ सशक्‍त रचना ।

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  13. अब स्वयं भीचो मुट्ठी
    करो संकलित प्रहार
    बिना किसी सहायता की उम्मीद के
    करो अमेरिका सा दिलए दिमाग और ज़ज्बा
    तभी बचा सकते शरीर के कटते टुकड़े
    समेट सकते हो उन्हें
    जो बिखर गए सड़कों पर
    लावारिस।

    कविता के तेवर स्पष्ट हैं।
    सोते हुए को जगाती हुई रचना।

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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