वाचक जी नहीं रहे
मार्निंग वाक् से लौटे
और चाय भी नहीं पी पाए
अभी तो रिटायर हुए थे
दो साल भी नहीं चल पाए
आस पास कोई नहीं था
पत्नी सीने पर चूड़ियाँ ही तोड़ रही थीं
दरवाजे पर पडोसी आते जा रहे थे
बेटा हैदराबाद से आयेगा
आसपास के परिवार वाले
आने वाले है
अर्थी कौन उठाएगा
प्रश्न हवा में तैर रहा था
भीड़ बढ़ रही थी
शर्माजी भीड़ को चाय पिलाने लगे
आफिश के भूले बिसरे दिखाई देने लगे थे
रोते पीटते दूर के घरवाले आ गए थे
निर्णय हुआ
जल्दी ले चलो
कोई नहीं आ पायेगा
मोहन ग़मगीन था
बिल्डिंग मटेरिअल का बीस हज़ार बाकी था
बिना चुकाए चल दिए
दद्दा बोले दस तो कल हमसे लाये थे
परसों देने का वादा था
आज ही चले गए
राम नाम सत्य है
भीड़ मंदिर तक साथ चली
फिर तितर बितर हो ली
वर्मा जी जल्दी में थे
बिहारी जी आप चले.... कह कर खिसक लिए
कुछ मुरझाये चेहरे गंगा घाट तो गए
दूर तखत पर बैठ गए रामदेव-अन्ना बतियाते रहे
यही सत्य है
बाकी सब असत्य
पण्डे ,पुजारी, लकड़ी वालों के चेहरे खिले थे
आज लाशें जी ज्यादा हो गयी थी
आज अच्छी छनेगी
महीनों का सूखा हटेगा बिरयानी बनेगी
वाचक जी धुवां हो गए थे
सब ने नीम चबाये और
जम के पड़े खाए
खाए जाते है ना .......
दूर के घरवाले चौराहे से ही घर चले गए
देर जो हो रही थी
रात घिर आयी
काम करने वाली अम्मा सबसे बाद में गयी
वाचक की पत्नी को सहलाती रही
किसी ने दरवाजे पर आटे का दिया जला दिया
और सन्नाटा पसरे घर के बरामदे में बैठ गयी अर्धांगिनी... अधूरी
बिजली चली गयी रात भर के लिए
वाचक जल रहे थे दिया बनकर
वाचक की पत्नी लौ से अब भी आस लगाये थी
शायद वो लौट आयें
मगर झूठे निकले तुम भी
कहते थे तुम्हारा साथ निबाहूंगा
खूब साथ निभाया
तुम भी तो अपने ही हो न
क्या साथ नाबहोगे ?
बस बहाने बनाओगे
और आधे रस्ते से घर निकल जाओगे .
- कुश्वंश
very nice...
जवाब देंहटाएंjivan kee nashwarta , dikhawe ke logon ko achhi tarah ubhaara hai
जवाब देंहटाएंkitni hi bakhoobi se aapne pehle maut aur fir zindagi ko pesh kiya,bahut khoob:)
जवाब देंहटाएंमार्मिक |
जवाब देंहटाएंऐसा हश्र हो ही रहा है अब |
बच्चे दूर
पडोसी मजबूर
बकायेदार बकें
पण्डे रहे घूर --
अपनी बिरयानी -
लाश जलानी |
पोलिटिक्स बतियाना
पेडे खाना
सबका घर जाना
और
और उनका
इस बार
वापस न आना ||
बेहतरीन प्रवाह
सच्चाई का
सुपात्र
बधाई का --
भावमय करती शब्द रचना ... एक सच बयां करती हुई ।
जवाब देंहटाएंबहुत भावमयी कविता ....मन की वेदना को कहती हुई.....
जवाब देंहटाएंatyant bhawbhinee.......karuna ke ras men doobee hau.....
जवाब देंहटाएंek kadwa sach ujagar karti hui kavita......bahut hi bhawuk bhi....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसत्य को कहती सटीक रचना
जवाब देंहटाएंमार्मिक भावाभिव्यक्ति। बस सत्य यही है।
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएं सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह गईं हैं.वर्तमान का सच्चा चित्रण.
जवाब देंहटाएंसब कुछ जिंदगी के साथ ही है । जाने के बाद सब मूंह फेर लेते हैं ।
जवाब देंहटाएंजो सत्य दिखता है , वह असत्य है । और उल्टा भी सही है ।
सोचने पर मजबूर करती रचना ।
भावपूर्ण रचना...
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