कल रात मेरे पीछे लग गया सत्य,
सत्यासंवाद की गोष्ठी में
सत्य पर पुरजोर वकालत का
कुछ और ही अर्थ निकाल लिया उसने,
मैंने पूंछा क्यों भाई
गाँधी जी को छोड़
मेरे पीछे क्यों पड़े हो,
सिर्फ मुझे सुधारने में क्यों अड़े हो,
माना सत्य मेरी जबान में है,
मगर असत्य के इस जंगल में ,
सत्य,
बस तीर-कमान में है,
जब चाहो, जिसपर चाहो चला दो
और मीडिया बनकर तमाशा देखो,
सत्य पर असत्य को जूझने दो,
सत्य को एक और झूठ और
असत्य को एक और राह मिलने दो,
इसे जानते हो न
सत्यम ब्रूयात ,प्रियं ब्रूयात
न ब्रूयात सत्यम अप्रियम,
आज कल जो भी सत्य है,
अप्रिय है,
इसी लिए नहीं बोलता कोई अप्रिय सत्य,
मेरे दोस्त ! सत्य
तुम्हारा भरकस प्रयास निरर्थक जायेगा
कोई कितना भी करे कोशिश
आसानी से बस झूठ ही बोल पायेगा
सिर्फ झूठ ही बोल पायेगा
मैंने बोल भी दिया तो
क्या अकेला चना भाड़ फोड़ पायेगा ?
बेचारा चना !
किसी सुरक्षित जगह में भी
आत्महत्या की मौत मारा जायेगा,
और
चीखता रह जायेगा सत्य गलियों में,
असत्य फिर बच के निकल जायेगा,
सत्य !
तुम जाओ मुझे छोड़ो ,
पेड़ पर किसी ऊंची फुनगी पर बैठो
असत्य का टी- ट्वेंटी देखो
या फिर सरकारी दफ्तर में जाओ
गाँधी जी की फ्रेम लगी मिलेगी फोटो
उसमे चिपको
जहाँ सदियों से चिपके हो तुम .
और इंतज़ार करो युग बदलने का
शायद बदल जाये ?
-कुश्वंश
भावों का बहुत ही जबरदस्त प्रगटीकरण ||
जवाब देंहटाएंयह टिप्पणी सत्य है एकदम सत्य --
लेशमात्र भी झूठ नहीं ||
तुम जाओ मुझे छोड़ो ,
पेड़ पर किसी ऊंची फुनगी पर बैठो
असत्य का टी- ट्वेंटी देखो
या फिर सरकारी दफ्तर में जाओ
गाँधी जी की फ्रेम लगी मिलेगी फोटो
उसमे चिपको ||---
सोखे सागर चोंच से, छोट टिटहरी नायँ |
इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||
* * * * *
सौदागर भगते भये, डेरा घुसते ऊँट |
जो लेना वो ले चले, जी-भर के तू लूट ||
* * * * *
कछुआ-टाटा कर रहे , पूरे सारोकार |
खरगोशों की फौज में, भरे पड़े मक्कार ||
* * * * *
कोशिश अपने राम की, बचा रहे यह देश |
सदियों से लुटता रहा, माया गई विदेश ||
* * * * *
कोयल कागा के घरे, करती कहाँ बवाल |
चाल-बाज चल न सका, कोयल चल दी चाल ||
* * * * *
रिश्तों की पूंजी जमा, मनुआ धीरे खर्च |
एक-एक को ध्यान से, ख़ुशी-ख़ुशी संवर्त ||
* * * * *
प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
* * * * *
कुर्सी के खटमल करें, चमड़ी में कुछ छेद |
मर जाते अफ़सोस कर, निकले खून सफ़ेद ||
@ कुश्वंश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इस भाव-प्रवण रचना का एक-एक वाक्य आक्रोश को दमदार ढंग से बयाँ कर रहा है.
"माना सत्य मेरी जबान में है,
मगर असत्य के इस जंगल में ,
सत्य, बस तीर-कमान में है,"
........... लाजवाब, इस तुकांत ने तो दिल को सुलगा दिया.
आपकी सम्पूर्ण शब्दावली ......... वास्तविकता को बेहद ऊँचे स्वर में बोलते दिख रहे हैं.
"मीडिया बनकर तमाशा देखो,
सत्य पर असत्य को जूझने दो,
सत्य को एक और झूठ और
असत्य को एक और राह मिलने दो"
......... सबल भी सरल राह अपनाकर अपनी नपुंसकता दिखा रहा है. अन्याय और भ्रष्टाचार पर मीडिया जैसे तंत्र आज कोई अंकुश और भय नहीं बना पा रहे हैं.
तुम जाओ मुझे छोड़ो ,
पेड़ पर किसी ऊंची फुनगी पर बैठो
असत्य का टी- ट्वेंटी देखो
या फिर सरकारी दफ्तर में जाओ
गाँधी जी की फ्रेम लगी मिलेगी फोटो
उसमे चिपको
जहाँ सदियों से चिपके हो तुम .
और इंतज़ार करो युग बदलने का
शायद बदल जाये ? .......... इन पंक्तियों ने दहला दिया.
आपकी सम्पूर्ण शब्दावली वास्तविकता को बेहद ऊँचे स्वर में बोलती दिख रही है.
जवाब देंहटाएंसच से पीछा छुडाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
जवाब देंहटाएंसत्य और असत्य के बीच होती जंग का बहुत अच्छा चित्रण |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत गहरी बात कह दी आपने।
जवाब देंहटाएं---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
असत्य का टी-ट्वंटी....
जवाब देंहटाएंवाह, क्या प्रतीक है,
एकदम मौलिक
बहुत धारदार रचना है कुश्वंश जी।
बधाई
तुम जाओ मुझे छोड़ो ,
जवाब देंहटाएंपेड़ पर किसी ऊंची फुनगी पर बैठो
असत्य का टी- ट्वेंटी देखो
या फिर सरकारी दफ्तर में जाओ
गाँधी जी की फ्रेम लगी मिलेगी फोटो
उसमे चिपको
बहुत तीखी बात कह दी है ...फिर भी सच कह दिया ..
आज कल जो भी सत्य है,
जवाब देंहटाएंअप्रिय है,
इसी लिए नहीं बोलता कोई अप्रिय सत्य, ... sahi kataksh kiya hai ...
सभी सुधी जनो का कविता में रूचि लेने के लिए आभार, महेंद्र जी ,रश्मि जी एवं संगीता जी के उदगार सदैव नयी उर्जा संचारित करते है, प्रतुल जी का विशेष रूप से आभारी हूँ उन्होंने व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर कविता के मर्म को समझा और जो मैं कहना चाहता था उनतक पहुची बात. अब लोगो तक पहुचेगी ऐसा विस्वास हो गया. प्रतुल जी आपकी सदIस्यता का पुनः आभारी ये कविता आपको समर्पित, स्वीकार करें -कुश्वंश
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सत्य !
जवाब देंहटाएंतुम जाओ मुझे छोड़ो ,
पेड़ पर किसी ऊंची फुनगी पर बैठो
असत्य का टी- ट्वेंटी देखो
या फिर सरकारी दफ्तर में जाओ
गाँधी जी की फ्रेम लगी मिलेगी फोटो
उसमे चिपको
जहाँ सदियों से चिपके हो तुम .
और इंतज़ार करो युग बदलने का
शायद बदल जाये ?....
आज की व्यवस्था पर आक्रोश को बहुत ही सशक्त शब्द दिए हैं..सच में आज सत्य बोलना एक गुनाह हो गया है..बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति..
माना सत्य मेरी जबान में है,
जवाब देंहटाएंमगर असत्य के इस जंगल में ,
सत्य,
बस तीर-कमान में है,
जब चाहो, जिसपर चाहो चला दो
और मीडिया बनकर तमाशा देखो,
सत्य पर असत्य को जूझने दो,
सत्य को एक और झूठ और
असत्य को एक और राह मिलने दो,
दर्द होता रहा छटपटाते रहे,
आईने॒से सदा चोट खाते रहे,
वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे
हम वतन के लिए॒ सिर कटाते रहे”
सत्य और असत्य का यह टी-२० जब होगा बहुतों के छक्के छूटेंगे, कितने साफ़ बोल्ड होंगे, कितने लाख कोशिशों के बावजूद boudri line पर पकडे जायेंगे. गाँधी जी का सत्य का danda ही वह बज्र-ball बनेगा जिससे इंडियन वृत्त्सुरो का अन्त होगा. प्रतीक्षा है इस टी-२० मैच के प्रारम्भ होने की.
जहाँ सदियों से चिपके हो तुम .
जवाब देंहटाएंऔर इंतज़ार करो युग बदलने का
शायद बदल जाये ?
कुश्वंश जी ...बहुत सटीक बात लिखी है आपने ...
आजकल के हालात ...सत्य को झुटला रहे हैं ...चारों और का वातावरण देख कर मन उदास होता ही है ...!!
गहरी भावनाएं लिए ...सुंदर कविता ....!!
बहुत ही सच कहा आपने.बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंऔर इंतज़ार करो युग बदलने का
जवाब देंहटाएंशायद बदल जाये ?
बिल्कुल सही कहा है आपने इन पंक्तियों में ।
पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं। बहुत सुंदर रचना..क्या बात है। बधाई
जवाब देंहटाएंआज कल जो भी सत्य है,
जवाब देंहटाएंअप्रिय है,
bahut sahi kaha kushvansh ji.aajkal ye kahna bhi bahut kathin bat hai.aabhar.
'और इंतज़ार करो युग बदलने का
जवाब देंहटाएंशायद बदल जाए '
............सत्य से वार्तालाप बहुत सुन्दर
देश और समाज की असुन्दरता का भावपूर्ण चित्रण करी प्रभावी रचना
जब चाहो, जिसपर चाहो चला दो
जवाब देंहटाएंऔर मीडिया बनकर तमाशा देखो,
सत्य पर असत्य को जूझने दो,
सत्य को एक और झूठ और
असत्य को एक और राह मिलने दो,
good..........
ummed karen wakt badlega.......
जब चाहो, जिसपर चाहो चला दो
जवाब देंहटाएंऔर मीडिया बनकर तमाशा देखो,
सत्य पर असत्य को जूझने दो,
सत्य को एक और झूठ और
असत्य को एक और राह मिलने दो,
सुंदर रचना....सुंदर प्रस्तुति...बधाई .