तारकोल और
पत्थरों के किरचों के मध्य
दबी छिपी रोटियां,
नाखून से कुरेदते
कीड़ों से बिलबिलाते बचपन,
विदेशी सुगंध से
दबी पिसी
चिपचिपी बू,
छटपटाते पाव
ढूंढते फिरते
दो फूटी छाव,
कल दोपहर
मिल गयी उसे
बिना कुरेदे
खून सनी रोटी,
एवज में
भरी भरकम
सड़क कूटने वाली आदिम मशीन से दबकर
सड़क हो गया
उसका पति,
आज भी उसने वो रोटी
सम्हाल के रखी है
आपनी मांग में
पति की जगह.
-कुश्वंश
आज भी उसने वो रोटी
जवाब देंहटाएंसम्हाल के रखी है
आपनी मांग में
पति की जगह.
मार्मिक , संवेदनशील भाव.... सच को प्रस्तुत करती कविता
ओह ..बहुत मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच में बेहद मार्मिक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंkitni gahraai hai...
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस रचना....
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