महेश कुशवंश

23 जून 2011

धर्म निरपेक्ष

मैं
सड़क पर गिरा एक पत्थर,
स्कूल से लौटते हुए बच्चे
ठोकरों से  दूर तक
धकेल लाते है,  
और घर चले जाते है,
मै वही पड़ा रहता हूँ निर्जीव,  
फिर कोई मुझे उठाकर
बन्दर भगाने लगता  है, 
बन्दर उसे काटने को दौड़ता है,
मै उसके हाथ से छूट जाता हूँ,   
भटक कर
उस मस्जिद से बाहर
सजदा करती भीड़ पर जा गिरता हूँ, 
भीड़ मेरे जैसे और पत्थर  उठालेती है 
और फेंकती है उस बस्ती में
जहाँ राम कथा चल  रही है, 
पत्थर से पुजारी जी का
अगरखा लाल हो  जाता है , 
और गूंजने लगते है  
धार्मिक उन्माद के स्वर, 
धार्मिक अस्त्रों के साथ, 
त्रिशूल ,तलवार ,छूरे,
अल्लाह हो अकबर ,
हर हर महादेव,
भागमभाग,  
लूटे पिटे भयभीत लोग ,
खून सने चेहरे, 
चीखते चिल्लाते बच्चे, 
धू-धू करते  घर, मकान,
खेत खलिहान, 
लाठिया पटकने की आवाज़,
अश्रू गैसके गोले , 
कदमताल करते बूट, 
सांप्रदायिक सौहार्द के पर्चे, 
टोपियों  की बाढ़,
हेलीकाप्टर की गर्द 
हमारे दिलों में जमने लगती है  सदियों के लिए,  
और कारक मैं  
एक पत्थर, 
आज भी उसी सड़क पर  पड़ा हूँ 
बच्चों की ठोकरों की राह ताकता 
धर्म निरपेक्ष, 

_कुश्वंश  

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर-सुन्दर-सुन्दर भाई|

    उत्तम-उत्तम-उत्तम भाई ||

    सुन्दर भाई -उत्तम भाई-

    मस्त बनाई -मस्त लिखाई||

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  2. सच है लोंग बिना सोचे समझे धर्म के नाम पर बवाल मचा देते हैं ..अच्छी प्रस्तुति

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  3. सच बोलता एक बेजुबां पत्थर ...
    पत्थर से जुड़े मेरे पास भी कुछ एहसास हैं ...पर फिर कभी !

    खुश रहें !

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  4. अति उम्दा प्रस्तुति।

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  5. बहुत सटीक पर कटु सत्य..बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति..

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  6. सच है पत्थर जहां पड़ा होता है वहीँ रह जाता है और दुनिया में न जाने कितने परिवर्तन हो जाते हैं |अच्छी प्रस्तुति |
    आशा

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  7. अब प्रशंसा के शब्द कहाँ जा कर ढूँढू...

    कलम सलामत रहे आपकी...

    ऐसे ही लिखते रहें...प्रभावशाली , अद्वितीय !!!!

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  8. एक पत्थर आदमी को क्या से क्या बना देता है ।
    मार्मिक प्रस्तुति ।

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  9. यथार्थ का सुन्दर वैचारिक काव्यमय प्रस्तुतिकरण...

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  10. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,सच्चाई के दर्शन कराती हुई रचना , बधाई

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  11. एक संवेदनशील सृजक की छटपटाहट को महसूस कराती इस कविता को पढ़ कर सुकून हुआ..... बहुत शानदार

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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