महेश कुशवंश

18 जून 2011

प्यार तुम्हारा



क्या बसता है  
उसके मन में
कैसे जानू,  
बंद आँख से  
अंतर्मन कैसे पहचानू,
उठती गिरती
अरमानों सी
स्वप्निल पलकें,
पुरवाई में और बिखरती
युवा लटें,
कैसे  बेसुध अंगड़ाई को
पढू,  पुकारूँ,  
श्रृंगार करूं या
मन को कहीं दूर ले जाऊं,
अंतर ध्वनि  की बात सुनूं  या  
ह्रदय दिखाऊँ,
कैसे किसको कहाँ-कहाँ
मन गीत सुनाऊँ,  
सूखा मन क्यों ?
बार-बार
भीगा जाता है,
क्यों  ? प्यार तुम्हारा
मृग मरीचिका
हो  जाता है.

-कुश्वंश
 

  

21 टिप्‍पणियां:

  1. उठती गिरती
    अरमानों सी
    स्वप्निल पलकें,
    यही तो मृ्गतृष्णा का कारण बनती हैं दिल को छू गयी आपकी रचना। शुभकामनायें।

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  2. कैसे किसको कहाँ-कहाँ
    मन गीत सुनाऊँ ||
    कैसे बेसुध अंगड़ाई को
    पढू, पुकारूँ ||

    सुन्दर पंक्तियाँ |
    तन्मयता से पढूं और
    धन्य हो जाऊं ||

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  3. यही तो मृ्गतृष्णा का कारण बनती हैं| बहुत खूब।

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  4. श्रृंगार करूं या
    मन को कहीं दूर ले जाऊं,
    अंतर ध्वनि की बात सुनूं या
    ह्रदय दिखाऊँ,
    कैसे किसको कहाँ-कहाँ
    मन गीत सुनाऊँ,

    वाह .. बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में आपने ... ।

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  5. बेनामीजून 18, 2011 1:27 pm

    भावमय करते शब्‍दों के साथ सुन्‍दर रचना ।

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  6. बहुत सुन्दर भावमयी रचना..

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  7. सूखा मन क्यों
    बार-बार
    भीगा जाता है?
    यही तिलिस्म हल हो जाये तो क्या कहने
    बहुत सुन्दर रूमानी रचना

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  8. जिनके ह्रदय में प्रेम है , वो कभी सूखता नहीं। बार-बार भीगना इस बात को बताता है की अक्षुण प्रेम से ह्रदय भरा हुआ है , जो अकसर छलक-छलक आता है। मन यदि एक बार भीग जाए प्रेम से तो सूखना संभव नहीं है।

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  9. सूखा मन क्यों
    बार-बार
    भीगा जाता है?

    बहुत सुन्दर रचना,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  10. बेहतरीन ।
    ऐसी प्रेम रचनाएँ दिल को हमेशा ज़वान रखेंगी ।

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  11. एहसास सब महसूस करा देतें हैं!
    बधाई ! कुश्वंश जी |

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  12. बहुत कुशलता से सरल शब्दों में बाँधी है आप ने भाव अभिव्यक्ति.

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  13. बहुतों का प्यार मृग मरीचिका ही होता आया है।
    सुंदर, फूल सी कविता के लिए आभार, कुश्वंश जी।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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