महेश कुशवंश

8 जून 2011

खुली आँखों के सपने


आज कुछ सपनो की बातें करते हैं
ऐसे सपनों की
जो हमेशा आँखों में रहते है
कभी ओझल नहीं होते
जागते हुए भी
उन्ही में एक सपना है
सफ़ेद उज्जवल कपड़ों में
बाँध कर बांश के दो डंडों में
एक हुजूम के हाथों हाथ
बाबूजी अमर रहे के नारों के  साथ
धुएं में विलीन होती काया को
कपाल क्रिया कर
राख में बदल आया था मैं 
और चुन लाया था अस्थियाँ भी   
वही क्यों
यहाँ-वहां खड़े दिखते है मुझे
किया तो था मैंने
कर्मकांडी तर्पण
पुष्कर में  पिंडदान भी
फिर क्यों
अतृप्त आत्मा की तरह
मेरे सपनों में  
हकीकत से खड़े रहते है
कोई ज्योतिष
कोई बाबा
कोई तांत्रिक
पहेली को  हल नहीं  कर सका
किसी ने कहा
नहीं मिली मुक्ति
भटकती आत्मा है वो
स्वर्ग नहीं मिला उन्हें
कभी कभी सोचता हूँ मैं
बुजुर्ग माँ-बाप की पथराई आँखें
मूंक, प्रश्न-रहित
संगिनी के सूख चुके आंशू  
बिन ब्याही बेटी की चीख
बेटे की
खिलखिलाती बेटी की कूक
और निः:शब्द आसमान निहारता पुत्र
उन्हें आसपास ही
मडराने को मजबूर करते है सब
जीने की इच्छा लिए   
एक अतृप्त आत्मा को
कैसे मिल सकती है मुक्ति
और यही उत्तर है शायद जो
सपना होकर भी मेरी
दिनचर्या में बदल जाता है
और मैं
उनसे हल करवाता हूँ
जीवन के  कठिन प्रश्न
और सो लेता हूँ चैन की नींद
और जब भी लोग समझते है
मुझ पर कोई वरदहस्त नहीं
मैं  देखने लगता हूँ
फिर से
हकीकत का
फिर वही सपना
खुली आँखों से
दिन मैं भी .

-कुश्वंश

22 टिप्‍पणियां:

  1. DIL KO CHOO GAEE AAPKI YE RACHNA. sAHEE HAI KI ITANE KAM ADHURE CHOOT JAYEN TO KAISE KOEE MUKT HO PAYEGA ? uSAKI ATMA TO BALBACHCHON KE PRASHN SULZATI HEE GHOOMATI RAHEGI.

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  2. मन में उठते मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है इस रचना में। जीवन के बहुत से प्रश्न मन को यूँ हो व्यथित करते हैं , इनके उत्तर नहीं होते किसी के पास। ऐसी ही परिस्थिति में काम आते हैं सपने । कभी नींद में देखे गए तो कभी जागती आँखों से। इन ख्वाबों में हम बुन सकते हैं उस सुनहली दुनिया को जैसा की हम देखना चाहते हैं इस दुनिया को ।

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  3. मार्मिक भाव...... गहन अभिव्यक्ति

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  4. आज कुछ सपनो की बातें करते हैं
    ऐसे सपनों की
    जो हमेशा आँखों में रहते है
    कभी ओझल नहीं होते... kya kahun , jane kitne khwaab yun hi tairte rahte hain

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  5. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  6. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

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  7. भावुक कर देने वाली रचना....

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  8. अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

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  9. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. kushwansh ji,
    nihshabd ho gai rachna padhkar. bahut gahri aur bhaavpurn abhivyakti. badhai sweekaaren.

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  12. बेहद सुन्दर रचना पढ़ी.. सपनो की खुली आँख के... भावनाओं से भरपूर पंक्तिय दिल को छू जाति है... मेरे ब्लॉग में भी कुछ इस तरह की भावनाओं को लिए रचना है..मेरे ब्लॉग अमृतरस पर आपका स्वागात है |

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  13. मार्मिक भाव ....... बेहद सशक्त अभिव्यक्ति ......

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  14. आज कुछ सपनो की बातें करते हैं
    ऐसे सपनों की
    जो हमेशा आँखों में रहते है
    कभी ओझल नहीं होते.
    ye sahi shayad bahut se logon ka sach hai .
    bahut marmik kavita
    badhai
    rachana

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  15. हम्म...मार्मिक अभिव्यक्ति..

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  16. उनसे हल करवाता हूँ
    जीवन के कठिन प्रश्न
    और सो लेता हूँ चैन की नींद
    और जब भी लोग समझते है
    मुझ पर कोई वरदहस्त नहीं
    मैं देखने लगता हूँ
    फिर से
    हकीकत का
    फिर वही सपना
    खुली आँखों से
    दिन मैं भी .

    bahut khoobsurat rachna,gahan chintan liye hue...
    "yunhi kat jaati hai ye zindagi
    kabhi prashn hal karte hue
    kabhi sapne dekhte hue
    kabhi hakeekat me jeete hue!

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  17. हमारे अपने हमेशा हमारे साथ रहते हैं।
    जीवन भर भी और जीवन के पश्चात स्मृतियों के रूप में भी।
    बढ़िया रचना।

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  18. फिर वही सपना
    खुली आँखों से
    दिन मैं भी||

    बढ़िया ||

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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