महेश कुशवंश

7 जून 2011

इज्ज़त की रोटी


शाम का वक्त है
एक डुगडुगी बजती है
आननफानन बच्चे भागते है
मैदान में मजमा लगा है
डुगडुगी बजाता एक दो फुटा आदमी
पांच फुटी लड़की के कंधे पर चढ़ा है
भाइयो-बहनों
आओ-आओ खेल देखो
एक गायब होती  लड़की
एक बन्दर कैसे बन जाता है आदमी
एक आदमी क्यों हो जाता है बन्दर
एक पेड़ कैसे रोता है दूध के आंसू
एक रोटी कैसे छिन जाती है भिखारी की
एक भिखारी कैसे बना राजा
डुगडुगी वाले  का पांच साल का बच्चा
कलाबजिया खाता है
और गाता है
दिल्ली का लीला बाज़ार देखो
सत्ता का चलता व्यापार देखो
बापू की  छाती पे ठुमके और गीत
राजा  पर जूते का वार देखो
देखो देखो तमाशा देखो
...
तमाशेवाली लड़की
डंडे पर कसी रस्सी पर चढ़ जाती है
और चिल्लाती है
आज वो सब देखेंगे
जो  कभी नहीं देखा
डुगडुगी वाला गाता है
माय नेम इस शीला
शीला की जवानी
...
भीड़ बढ़ने लगती है
बेकाबू बढ़ जाती है
तमाशा जोर पकड़ता है
लड़की ऊपर पहनी कोटी उतार फेकती है
और नीचे पहनी सलवार भी
भीड़ और पास खिसक आती है
लोग खुसुर-फुसुर करते है
डंडे में बंधी रस्सी तेजी से डोलती है
लड़की निचले वस्त्र में ऊँगली फसाती है
भीड़ और बढ़ जाती है
अचानक वो लड़की रस्सी से नीचे कूद जाती है
अपनी हथेलियों में मुह छुपाकर
जमीन पर गड जाती है
 डुगडुगी  वाला  पैसे की गुहार लगाता  है
कुछ शर्म बची हो तो
इस इज्जत के ही पैसे देदो
तुम इज्ज़त वालों को इज्ज़त का वास्ता
उसकी इज्ज़त तो  खिलौना थी
दिखा दी
हमारे पास है क्या है
जो दिखा सकू
और रोटी खा सकू
इसे भी खिलाना है
खिलाकर इसकी इज्ज़त के लिए
इसकी जान बचाना है
कही और जो दिखाना है
तुम्हारी तो बोटी  है हमारी जिन्दगी..
हमारी तो यही है
लड़की भी
इज्जत भी
रोटी भी
जिन्दगी भी
हे राम ..

-कुश्वंश   




12 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ शर्म बची हो तो---
    इस इज्जत के
    ही पैसे देदो
    jabardast

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  2. गहन भावों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. उफ़्…………निशब्द कर दिया।

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  4. दिल को चीर देने वाली रचना...

    उफ़...क्या कहूँ...

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  5. तुम्हारी तो बोटी है हमारी जिन्दगी..
    हमारी तो यही है
    लड़की भी
    इज्जत भी
    रोटी भी
    जिन्दगी भी
    हे राम ..

    झकझोर देने वाली रचना....

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  6. गरीब के मन की , व्यथित कर देने वाली व्यथा...क्या कहूँ ....
    नमन है आपकी लेखनी को।

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  7. तुम्हारी तो बोटी है हमारी जिन्दगी..
    हमारी तो यही है
    लड़की भी
    इज्जत भी
    रोटी भी
    जिन्दगी भी
    हे राम ..

    ऊफ........
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  8. हमारी तो यही है
    लड़की भी
    इज्जत भी
    रोटी भी
    जिन्दगी भी


    so poignant.... beautiful depiction of poverty and hunger.

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  9. तमाशे के दो चेहरे
    एक मनोरंजन
    दूसरा मजबूरी
    दोनों की कड़ी बंटी हुई कविता
    का अंत कहीं न कहीं याद दिला देता है की
    'मजबूरी का नाम ही महात्मा गाँधी है '
    बहुआयामी गहरी रचना के लिए बधाई

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  10. वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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