महेश कुशवंश

3 जून 2011

बाबा ! तुम क्यों ?

बाबा ! 
ये क्या किया,
क्यों कुरेद दिया
एक ज्वालामुखी,
जिसका लावा
तैयार है भस्म करने को
उन सबका तिलस्म,
जो जादूगर बने बैठे है,
मदारी बने है
उन बंदरों के
जो खेल दिखाने  के काम आते है,
और सदियों से मदारी की डुगडुगी पर
नाच दिखाते है,
उन्हें क्यों बता दिया
बन्दर बनाये रखने का षड़यंत्र
कहा से रचा जाता है,
बाबा !
तुम क्यों ?
कन्दिराओं से बाहर आये,
आये थे तो योग ही सिखाते,
वही रहते तो
ये मदारी तुम्हें सर आँखों पर बिठाते,
तुम्हे रत्नों से नवाजते,
तुम्हारे पुतले लगते,
सदियों तक तुम अमर हो जाते,
प्रजातंत्र वही,
जहाँ
प्रजा तंत्र - मंत्र से रहे काबू,
और तंत्र-मंत्र जो इन्होने जाना,
तुम भी तो जानते हो,
भारत सोने की चिड़िया था,
इसे बहुतों ने लूटा,
इन्हें भी  लूटने देते,
धन कोई भी काला  नहीं होता,
काले होते है लोग ,
जो धन को ही नहीं
परिवेश को ही काला कर देते है,
और बने रहते है सफ़ेद
खादी  की तरह,
बाबा !
सावधान ,
जिनके लिए तुमने
भूंखे रहने का मन बनाया है,
उन्ही में  बहुतों की
काली काया है,
जो सफ़ेद  होकर बचने को
तुम्हारे पीछे खड़े  है,
तुम्हरे लिए ये
संकट की घडी है
इन्हें पहचानने की,  
इनसे भी योग कराओ,
इनके हाथ उठवाओ,
इन्हें भारत  माँ की कसम  खिलाओ ,    
आपसे दीक्षा लेकर जाये,
और कम से कम
अपने अन्दर एक ज्योति जलाये,
मन और हृदय से
काले मदारियों को  नहीं
सही अर्थों में  
बाबा को अपनाये,   
तभी सार्थक होगी तुम्हारी जंग,
और तभी आएंगे
हमारे देश में
इन्द्रधनुषी रंग .

-कुश्वंश


10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय कुश्वंश जी,
    कमाल के समसामयिक जज्बातों से सने हुए भाव हैं. आपकी ये रचना भ्रष्टाचार से त्रस्त और गद्दारों के प्रति बिखरे हुए क्रोध को एक दिशा देने का कार्य करेगी.

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  2. ये तो पत्थरों का शहर है , यहाँ किस को अपना बनाइये ।
    बाबा की कोशिश कामयाब रहे , यही कामना है ।

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  3. जिनके लिए तुमने
    भूंखे रहने का मन बनाया है,
    उन्ही में बहुतों की
    काली काया है,
    जो सफ़ेद होकर बचने को
    तुम्हारे पीछे खड़े है,
    सत्य वचन ....

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  4. अक्षरश: सत्‍य कहा है आपने ।

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  5. तुम्हरे लिए ये
    संकट की घडी है
    इन्हें पहचानने की,
    इनसे भी योग कराओ,
    इनके हाथ उठवाओ,
    इन्हें भारत माँ की कसम खिलाओ ,
    आपसे दीक्षा लेकर जाये,
    और कम से कम
    अपने अन्दर एक ज्योति जलाये
    सामयिक विषय पर बहुत ही अर्थ-पूर्ण कविता .

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  6. बहुत सुंदर पंक्तियाँ, एकदम सामयिक, क्या बात है आपकी,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  7. खुबसुरत रचना। बधाई के पात्र है।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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