महेश कुशवंश

1 जून 2011

रास्ता दिखाए कौन











तिनके हुए दरख़्त,  
पिलपिले हुए शख्त ,
खुल गए स्कूल  कागजों में
मिड डे खाकर हुए मस्त,
गेहू और गन्ने में
उगने लगी अफीम,
धनिया घर फ़ैल गयी
दूरदर्शन  थीम ,  
हरिया और सुखिया की
ढह गयी दीवार,
गलियों में फ़ैल गया
छज्जे का  प्यार ,
घर घर  में
गलियों में
बेढंगे  ढंग,   
चौकी में आ गए
चुलबुल  दबंग,
बुलबुल को घेर लिया 
बैठाया घर में , 
घरवाले भाग गए
पीने शहर में ,
न जाने कौन सा 
होगा अब हाल,
बहुए मनायेंगी 
सास बिना ससुराल,
झींगुर को बुढ़ापे में
चढ़ गया ताप,  
चीख रहा गलियों में
बुड्ढा होगा तेरा बाप...
ऐसे ही जिनमे है
सामर्थ  दिशा देने की,
संस्कृति की, मूल्यों की
ताकत है सजोने की,
प्रश्न है ?
इन भटकों को
रास्ता दिखाए कौन, 
आप ,
हम ,
या कोई नहीं, 
सब मौन 
बस मौन ...

- कुश्वंश
   







13 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल के हालातों पर सही कटाक्ष| धन्यवाद|

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  2. sarv pratham mere blog par aane ke liye haardik dhanyavaad.aapki itni laajabaab kavita padhne ko mili.samaaj ki badhti hui kureetiyon par bahut achcha kataksh kiya hai aabhar.

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  3. सटीक अभिव्यक्ति..... प्रासंगिक भाव

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  4. सब मौन
    बस मौन ...

    भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  5. आज तो आपने सारे सीरियलों की कलई खोल दी।

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  6. सही सवाल उठाया है । इस छज्जे के प्यार ने समाज की सारी व्यवस्था को झंझोड़ कर रख दिया है । आम लोगों पर फिल्मों का असर भी दिखाई दे रहा है ।

    कभी कभी सोचता हूँ यदि सभी सिर्फ प्यार करने लगें , और कुछ न करें तो देश कैसे बचेगा ।

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  7. बहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ....

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  8. गलियों में फ़ैल गया
    छज्जे का प्यार ,

    अच्छी पकड़ है आपकी ....
    बधाई ...!!

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  9. बहुत ही सार्थक प्रश्न है ...आज नहीं तो कल , कोई न कोई तो अवतरित होगा ही इस धरा पर , इन विसंगतियों से लड़ने के लिए।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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