कल शाम
शादी का निमंत्रण था,
मैंने सोचा
कुछ देर से जाऊँगा,
अक्सर देर से ही बरात आती है,
जल्दी जाओ तो
आने में बहुत देर हो जाती है,
अब जाओ तो
जयमाल तक तो रहो ,
मेरे मित्र बोले
चलिए जल्दी हो आते है,
व्योहार देंगे ,खायेंगे चले आएंगे ,
बारात का क्या लेना-देना हमसे ?
उसे घरवाले निपटायेंगे,
समझ-बूझ चुके होंगे
तो शांति से निपटेंगे कार्यक्रम,
नहीं तो बाराती है
कुछ तो रंग दिखायेंगे,
मैंने देखा
हाट लगी थी,
चाट,फल,कोल्डड्रिंक,चाउमीन,
आइश्क्रीम सनी डिस्पोसबिल प्लेंटें
पंडाल में बिखरी पडीं थी ,
शुक्ल जी
शर्ट पर गिरी दाल पोंछ रहे थे,
गुप्ता जी बोले,
खा लीजिये भाईसाहब
खाना ख़तम हो रहा है,
व्योहार का क्या है
दे दिया जायेगा ,
वो दरवाजे पर ही बैठे है
ऐसे जाने देंगे क्या ?
कार्डों के हिसाब से लिफाफा गिना जायेगा
न देने वाला पकड़ जायेगा ,
मै बेटी के पिता के पास बैठ गया,
कोई काम हो तो बताइए,
वे मोबाइल पर किसी युद्ध में व्यस्त थे
मुह पे मारों कमीनों के....,
स्वागतम गेट पर
लिफाफे देने वालों की भीड़ थी,
में देखता रहा चुपचाप
कोई कह रहा था
खाना अच्छा नहीं था,
मीनू भी कम था,
शोर तो बड़ा सुनते थे,
तरह-तरह के लोग
तरह-तरह की बातें ,
मुझे याद आ गया गाँव ,
महीनों से पूरा गाँव जुटता था ,
चारपाइयाँ मांगी जाती थी,
दूध नहीं बेंचा जायेगा उस दिन
बिटिया की शादी है वहाँ जायेगा ,
अगवानी पर पूरा गाँव बारातियों के छुएगा पैर
बुजुर्गों की अगुआई में,
दरवाजे पर एक पैर रहेगा पूरा गाँव,
सब हो जाते
चाचा,ताऊ, दादा, मामा
न कोई हलवाई
न प्लेटों की गिनती ,
बारात के आने से जाने तक
किसने कब खाया, कोई नहीं जानता ,
वर्मा जी ने जगाया
कहाँ खो गए चलो,
बारात नहीं आयी अभी भी
सब खाकर चले गए
अब तो चलो,
मैंने देखा पंडाल खाली है
कुर्सियों पर सिर्फ घरवाले बचे है
सोते बैंडवालों के साथ,
बरात के इंतज़ार में
कब आयेगी बरात,
कौन करेगा अगवानी ,
खाली प्लेटें, कप या गिलाश,
सब तो चले गए,
खाकर,
व्योहार देकर,
और चाहते क्या थे तुम,
तुम भी तो यही करते हो,
हवा में तैर रहा है प्रश्न ?
नेपथ्य में बज रहा है
तुम जो आये जिन्दगी में बात बन गयी,
इस शहर में आ गए क्या ?
जात बन गयी.
- कुश्वंश
आज के व्यवहार का सच्चा खाका खींच दिया है ...
जवाब देंहटाएंab sab apne samay aur apne liye rah gaye hain .... niklenge baahar kaafi kuch ganwaker
जवाब देंहटाएंशादियों के बदलते स्वरुप पर बढ़िया व्यंग ।
जवाब देंहटाएंसच है आजकल शहर की शादियों में मतलब खाने पीने और लिफाफा पकड़ाने तक ही सीमित रह गया है ।
बिल्कुल सच्चाई बयाँ कर दी…………यही हालात हैं आज्।
जवाब देंहटाएंशादियों के बदलते स्वरुप पर बढ़िया व्यंग.........
जवाब देंहटाएंव्योहार का क्या है
जवाब देंहटाएंदे दिया जायेगा ,
वो दरवाजे पर ही बैठे है
ऐसे जाने देंगे क्या ?
कार्डों के हिसाब से लिफाफा गिना जायेगा
न देने वाला पकड़ जायेगा ,
HAHAAHAHAH.........SATEEK VYANGYA....
ise shahar ki jaat kahen ya vicharon ka girta star, magar ye jaat ka asar uttam nahi hai.....
behad!! behad khubsoorat prastuti.....!!!
waise aaj ki jaat me to baaraat ki bhi kahi kahi jarurat na rahee...
जवाब देंहटाएं"saji nahi baaraat to kya?
pehlene nai kangan to kya?
byah kiya tere waado se
gathbandhan teri yaadon se
bin fere hum tere..........!!!! hahaha
आज के व्यवहार का सच्चा खाका खींच दिया है|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंव्योहार का क्या है
जवाब देंहटाएंदे दिया जायेगा ,
वो दरवाजे पर ही बैठे है
ऐसे जाने देंगे क्या ?
कार्डों के हिसाब से लिफाफा गिना जायेगा
Yahi hai aj ke samaj ka vyvhar....
typical happening in an Indian house when one goes to attend a marriage.
जवाब देंहटाएंTruth unleashed !!
सच में आजकल के विवाह समारोह में यही होता है, सार्थक मजेदार एवं सटीक व्यंग्य
जवाब देंहटाएं- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
और चाहते क्या थे तुम,
जवाब देंहटाएंतुम भी तो यही करते हो,
हवा में तैर रहा है प्रश्न ?
नेपथ्य में बज रहा है
तुम जो आये जिन्दगी में बात बन गयी,
इस शहर में आ गए क्या ?
जात बन गयी.
यथार्थ का चेहरा दिखाती इस हृदयस्पर्शी रचना के लिए बधाई...
आज के यथार्थ का बहुत सटीक चित्रण किया है...बधाई
जवाब देंहटाएं