महेश कुशवंश

27 मई 2011

अंजाम नहीं मालूम


महाभारत की द्रोपदी का प्राणांत
कोई नहीं जानता,
और जानता भी हो  तो
पढने जैसा कुछ नहीं होगा उसमे,  
क्योकि द्रोपदी
महाभारत समाप्त होने पर भी
नहीं मरी,
आज भी जिन्दा है,
नाम बदलकर
पलती है हमारे आपके बीच,
जुए में हारने के लिए,
कृष्ण सहित सारी द्वारिका  
चली गयी थी रसातल में,
फिर चीर हरण रोकने को
कहाँ से आएंगे कृष्ण,
राक्षस  सारे पाताल नहीं भागे,
यहाँ  वहां  दुबक गए
कलयुग में पैदा होने के लिए,
अर्जुन, तीर कौशल से नहीं
स्वयं को बेंचकर
वरण  करेंगे द्रोपदी,
पांडव उस सभा में  नहीं होंगे  
किसी और सभा में, 
उसी समय 
अच्छे मूल्यों पर बिक रहे होंगे,
कई ध्रुपद खरीद रहे होंगे वर
मंडियों से ,
और कुंती रख रही होंगी हिसाब ,
कोई कम में तो नहीं बिका,
कोई घाटा नहीं चाहिए,
उसने तो कर्ण का भी जोड़ रखा है हिसाब,  
पिता के लिए
अब कोई  भीष्म  नहीं लेगा प्रतिज्ञा,
यौवन  कौन किसे देता है,
सिंहासन  की ओट में कई ब्रहान्न्लायें
भीष्म को देंगी चुनौती,
बचाओ,
अगर बचा सकते हो
महाभारत,
द्रोपदियों का चीरहरण ,
भीष्म फिर हार जायेंगे,
न दोपदी को बचा पाएंगे,
न महाभारत,
इस कलयुगी महाभारत में
कृष्ण भी नहीं होंगे,
होंगे सिर्फ
ध्रतरास्ट्र, दुर्योधन और दुश्शासन,  
और होंगे
चीरहरण के वस्त्र
चारो तरफ,
द्रोपदी के नहीं
मूल्यों के,
परम्पराओं के ,
संस्कारों के,
प्रागैतिहासिक युग की  
वो महाभारत तो अंजाम तक पहुच गयी थी,
प्रगतिशील  युग की इस महाभारत का  
अंजाम किसी को नहीं मालूम,
कृष्ण को  भी नहीं,
कैसे जान  ले वो
बिना जन्म लिए .....



-कुश्वंश


20 टिप्‍पणियां:

  1. -कुश्वंश जी ,

    महाभारत के पत्रों को ले कर आज की जो उठा पटक है वो आपने बहुत खूबसूरती से लिखी है ... आज कल सच ही स्वयं को बेच कर ही वरण करा रहे हैं कन्यायों को ...बिक रहे हैं अच्छे दाम पर ...

    वो महाभारत तो अंजाम तक पहुच गयी थी,
    परगतिशील युग की इस महाभारत का
    अंजाम किसी को नहीं मालूम,
    कृष्ण को भी नहीं,
    कैसे जान ले वो
    बिना जन्म लिए ..

    सटीक और सार्थक प्रस्तुति ...

    बस एक संशय ...ब्रह्न्नालायें ... शब्द किस रूप में लिया है ? क्यों कि चुनौती तो भीष्म को शिखंडी ने दी थी और अर्जुन बने थे अगात्वास के समय ब्रह्न्न्ला ... शायद आपने उस रूप ( नपुंसक) को इंगित किया है ...ब्रह्न्न्ला के माध्यम से ..

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  2. अगात्वास... अज्ञातवास शब्द पढ़ा जाए

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  3. और होंगे
    चीरहरण के वस्त्र
    चारो तरफ,
    द्रोपदी के नहीं
    मूल्यों के,
    परम्पराओं के ,
    संस्कारों के,
    प्रागैतिहासिक युग की
    वो महाभारत तो अंजाम तक पहुच गयी थी,
    परगतिशील युग की इस महाभारत का
    अंजाम किसी को नहीं मालूम,
    कृष्ण को भी नहीं,
    कैसे जान ले वो
    बिना जन्म लिए .....

    bahut acchi rachna kushwansh ji...
    bahut shashakt ...

    जवाब देंहटाएं
  4. kushravans ji
    samajh me nahi aa raha hai ki comments dun to kya dun?
    aapki post ki har panktoyan aaj ke samaaj ke vastvik v vibhats rup ko shat -pratishat charitaarth kar rahi hain.aapne apni is behtreen rachna ke dwara samaaj ko aaina dikhaya hai.waqai jab tak koi krishhn hi nahi hoga to is mahabharat ki pariniti kya ho sakti hai iska ant hoga bhi nahi ye koun jaan sakta hai.
    bas yahi man kar chaliye ki hamari aapki koshishe hi rang layengi .
    bahut bahut behtreen rachna
    hardik badhai
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  5. और होंगे
    चीरहरण के वस्त्र
    चारो तरफ,
    द्रोपदी के नहीं
    मूल्यों के,
    परम्पराओं के ,
    संस्कारों के,

    एकदम सटीक पंक्तियाँ..... मन को उद्वेलित करती रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी सुधिजनो का आभार, मन में उठती टीश और कुछ न कर पाने की स्थिति आज सभी तरफ व्याप्त है और इसी को महसूस करने की कोशिस की है मैंने. मर्म समझ पाने के लिए आभार, आदरणीय संगीता जी मैंने ब्रहान्नला क्यों उपयोग किया शिखंडी के स्थान पर , सही पहचाना, बधाई, आज शिखंडी से नहीं बर्हंलाओं से चुनौती है समाज को.

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  7. कुश्‍वंश जी बहुत गहरे भावों को सुंदर ढंग से प्रस्‍तुत किया हैआपने।

    बधाई।

    ---------
    हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
    अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

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  8. तीखी व्यंग्यात्मक शैली मे सुन्दर रचना।

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  9. सुन्दर रचना लेखनी प्रशंसनीय ...

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  10. आधुनिक महाभारत के दर्शन करा दिए । बात में गहराई है ।

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  11. इस कलयुगी महाभारत में
    कृष्ण भी नहीं होंगे,
    होंगे सिर्फ
    ध्रतरास्ट्र, दुर्योधन और दुश्शासन,
    और होंगे
    चीरहरण के वस्त्र
    चारो तरफ,
    द्रोपदी के नहीं
    मूल्यों के,
    परम्पराओं के ,
    संस्कारों के,
    कलयुगी महाभारत का सर्वनाशी दृश्य उपस्थित करते हुए आपने निःसंदेह खामोश अग्नि को हवा दी है

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  12. बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  13. प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास...

    जो सटीक सार्थक विसंगतियों का चित्र खींचा है आपने न कि क्या कहूँ....

    आत्मा प्रसन्न और तृप्त हो गयी इस सारगर्भित रचना का पाठ कर...

    लेखनी तो लेखनी,आपकी चिंतन धारा अद्वितीय है....

    ऐसे ही लिखते रहें...

    अनत शुभकामनाएं...

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  14. बहुत खूबसूरती के साथ इस दौर की सच्चाई की तुलना महाभारत के पात्रों-प्रसंगों से किया है आपने। इस कविता के लिए आप बधाई के पात्र हैं।
    टंकण की कुछ त्रुटियां रह गईं हैं, एक बार देख लीजिए ।

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  15. आदरणीय महेंद्र जी, अभिवादन, त्रुटियों की और इंगित करने के लिए हृदय से आभार, आपके उदगार हमारी कलम को मजबूती देंगे पुनः आभार

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  16. महाभारत के पात्रो द्वारा अपने वर्तमान समाज पे जो टिप्पणी की है वो सार्थक है ... धन्यवाद !

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  17. bahut hi khoobsurat trasnformation dwapar aur kalyug ke beech main!

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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