तुमने कहा
मुझे भूल जाओ,
ना याद करो
ना सपने सजाओ,
और ना ही
कोई कसक बनकर
मेरी आँखों में किरकिराओ,
.................
मैं ,
भूल जाउंगी
वैसे ही जैसे,
कितनी ही बार
भूल गए थे तुम ,
और मैं
तुम्हे याद में रखने का
उपक्रम करती रही थी सालों साल,
तुम्हारे
ओस भर पिघल जाने से,
कई बार पिघली थी मै
तुम्हारे आगोश में
बर्फ की सिल्ली बनकर,
तुम्हारे गरजने भर से,
नाचने लगती थी मै
मोरनी बनकर ,
इस भ्रम मै की तुम
अब बरसे..तब बरसे,
तुम्हारी अंजुरी में बही हूँ नाचने लगती थी मै
मोरनी बनकर ,
इस भ्रम मै की तुम
अब बरसे..तब बरसे,
कई बार
नदी बनकर,
ये जानते हुए भी की
नदी के किनारे
कहाँ मिलते है कभी,
और शायद..!
सूखी नदी के किनारे ही नहीं होते,
आज मै ना वो पथिक हूँ
जो चिलचिलाती धुप में
प्यास से
हो रहा हो व्याकुल,
और ना ही वो पपीहा
जो
पी कहाँ-पी कहाँ रटे
और तोड़ दे दम,
मै पिघलती बर्फ भी हूँ,
बहती नदी भी,
चिलचिलाती धुप भी,
खुशनुमा सदी भी,
किनारों का भय नहीं मुझे,
देख रही हूँ समुद्र,
जिसमे मै जा मिलूंगी,
और तुमसे कभी नहीं कहूँगी
मुझे भूलना मत ..,
बेशक
मुझे भूल जाओ,
अब तो मुझे भूल ही जाओ .
-कुश्वंश
आप स्त्री मन को बाखूबी उकेर लेते हैं.. ये अति संवेदनशीलता द्योतक है.
जवाब देंहटाएंतुम्हारे
जवाब देंहटाएंओस भर पिघल जाने से,
कई बार पिघली थी मै
तुम्हारे आगोश में
बर्फ की सिल्ली बनकर,
तुम्हारे गरजने भर से,
नाचने लगती थी मै
मोरनी बनकर ,
इस भ्रम मै की तुम
अब बरसे..तब बरसे,
...........
किनारों का भय नहीं मुझे,
देख रही हूँ समुद्र,
जिसमे मै जा मिलूंगी,
और तुमसे कभी नहीं कहूँगी
मुझे भूलना मत ..,
बेशक
मुझे भूल जाओ,
अब तो मुझे भूल ही जाओ ... samudra ki lahron ki tarah umadte bhaw
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंकिनारों का भय नहीं मुझे,
जवाब देंहटाएंदेख रही हूँ समुद्र,
जिसमे मै जा मिलूंगी,
और तुमसे कभी नहीं कहूँगी
मुझे भूलना मत ..,
बेशक
मुझे भूल जाओ,
अब तो मुझे भूल ही जाओ
भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
मर्म भिंगो देने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंपीड़ा शब्दों में ढल जीवंत हो उठी है...
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंस्त्री मन की कोमल अनुभूतियों का सटीक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंकई बार पिघली थी मै
जवाब देंहटाएंतुम्हारे आगोश में
बर्फ की सिल्ली बनकर,
तुम्हारे गरजने भर से,
नाचने लगती थी मै
मोरनी बनकर ,
इस भ्रम मै की तुम
अब बरसे..तब बरसे,
तुम्हारी अंजुरी में बही हूँ bahut umda rachna hai aapki....ye line bahut psnd aai...aabhar
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (28.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
मै पिघलती बर्फ भी हूँ,
जवाब देंहटाएंबहती नदी भी,
चिलचिलाती धुप भी,
खुशनुमा सदी भी,
किनारों का भय नहीं मुझे,
देख रही हूँ समुद्र,
जिसमे मै जा मिलूंगी,
और तुमसे कभी नहीं कहूँगी
मुझे भूलना मत ..,
बेशक
मुझे भूल जाओ,
अब तो मुझे भूल ही जाओ .
....आपकी रचना ने निशब्द कर दिया...नारी मन की व्यथा और उसकी शक्ति को भी बहुत खूबसूरती से उकेरा है..लाज़वाब प्रस्तुति..आभार
beautiful lines !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावाभिव्यक्ति .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंअत्यंत मर्मस्पर्शी रचना ! नारी हृदय की वेदना को बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति दी है आपने !
जवाब देंहटाएंतुम्हे याद में रखने का
उपक्रम करती रही थी सालों साल,
तुम्हारे
ओस भर पिघल जाने से,
कई बार पिघली थी मै
तुम्हारे आगोश में
बर्फ की सिल्ली बनकर,
अद्भुत भावभूमि पर लिखी अप्रतिम है यह रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
सभी सुधीजनों का हृदय से आभार विशेषकर आदरणीय शास्त्री जी का उनके आशीर्वचनों के लिए जिनका मुझे प्रतिदिन इंतज़ार रहता था
जवाब देंहटाएंकोमल भावानुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति
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