कंक्रीट के जंगल में सब
रिश्ते लहुलुहान हो गए,
आये थे जीने सपनो को,
ह्रदय-भींच सारे अपनों को,
सपने सब शमशान हो गए,
रिश्ते लहुलुहान हो गए............
जीवन भर की पूँजी खोकर ,
घर रचने का स्वप्न संजोकर,
न जाने सब कहा खो गए,
सारे घर मकान होगये,
रिश्ते लहुलुहान हो गए......
इससे तो वो गाव भला था,
कछुए जैसी चाल चला था,
रिश्तों के रेशम धागों में,
प्रेम प्यार का रंग भरा था,
क्या पाया जो भरे कुलांचे,
रुपये पैसों के उपर नांचे,
कक्का ,ताऊ, काकी भौजी,
सब आंटी के नाम हो गए,
रिश्ते लहुलुहान हो गए.....
लौटा दो वो खेल खिलौने ,
नदियों के वो तरल बिछौने ,
बागों में अमिया की गंध ,
नहीं चाहिए कृतिम सुगंध,
लौटाओ गुड़ियों का खेल,
बच्चों की वो छुक-छुक रेल,
छुपा-छुपी, बागों के खेल,
वीडियो की दूकान हो गए,
रिश्ते लहुलुहान हो गए.......
प्रगतिशील कितना भी होले,
पहले अपना हृदय टटोले,
कही दबे-छिपे पन्नो में
पहले मन मंदिर को तौलें,
संस्कारों और परम्पराओं को
पहले सहज भाव से खोले,
देखोगे सब रिश्ते-नाते ,
हरे भरे खलिहान हो गए....
-कुश्वंश
देखोगे सब रिश्ते-नाते ,
जवाब देंहटाएंहरे भरे खलिहान हो गए....
वाह ..बहुत खूब कहा है आपने ।
प्रगतिशील कितना भी होले,
जवाब देंहटाएंपहले अपना हृदय टटोले,
कही दबे-छिपे पन्नो में
पहले मन मंदिर को तौलें,
संस्कारों और परम्पराओं को
पहले सहज भाव से खोले,
देखोगे सब रिश्ते-नाते ,
हरे भरे खलिहान हो गए....
काश ऐसा हो सके ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
khubsurt.......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंइससे तो वो गाव भला था,
जवाब देंहटाएंकछुए जैसी चाल चला था,
रिश्तों के रेशम धागों में,
प्रेम प्यार का रंग भरा था,
क्या पाया जो भरे कुलांचे,
रुपये-पैसों के उपार नांचे,
कक्का ,ताऊ, काकी भौजी,
सब आंटी के नाम हो गए,
रिश्ते लहुलुहान हो गए.....
bilkul wahi bhala tha aur hum apne ko to waise rakh sakte hain n
प्रगतिशील कितना भी होले,
जवाब देंहटाएंपहले अपना हृदय टटोले,
कही दबे-छिपे पन्नो में
पहले मन मंदिर को तौलें,
संस्कारों और परम्पराओं को
पहले सहज भाव से खोले,
देखोगे सब रिश्ते-नाते ,
हरे भरे खलिहान हो गए....
ईश्वर से यही प्रार्थना है ये रिश्ते-नाते हरे भरे खलिहान हो जाएँ... बहुत अच्छी प्रस्तुति........
sundar abhivyakti hai.
जवाब देंहटाएंaabhar
पहले सहज भाव से खोले,
जवाब देंहटाएंदेखोगे सब रिश्ते-नाते ,
हरे भरे खलिहान हो गए....
......शानदार अभिव्यक्ति।
प्रगतिशील कितना भी होले,
जवाब देंहटाएंपहले अपना हृदय टटोले,
कही दबे-छिपे पन्नो में
पहले मन मंदिर को तौलें,
संस्कारों और परम्पराओं को
पहले सहज भाव से खोले,
देखोगे सब रिश्ते-नाते ,
हरे भरे खलिहान हो गए....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
behatarin sakshy badhayi ji .
जवाब देंहटाएंक्या खोया क्या पाया और क्या करके क्या पाओगे...यह भली प्रकार समझाया आपने अपनी इस सुन्दर रचना द्वारा...
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
छुपा-छुपी, बागों के खेल,
जवाब देंहटाएंवीडियो की दूकान हो गए,
हालात और तथाकथित प्रगतिशील परिवर्तन की टीस है
बहुत सुन्दर रचना
आपकी रचना को पढ़कर लगा जैसे मेरे ही दिल की आवाज़ है.... बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकुश्वंश जी बहुत सुन्दर रचना आप ने पूरा गरमी दर्शन हमारे पहले के प्राथमिक और सहज रिश्ते के साथ इस वक्त के कंक्रीट के जंगल से तुलना दिखाया -अद्भुत सन्देश देती रचना -बधाई -निम्न पंक्ति खूबसूरत -
जवाब देंहटाएंपहले मन मंदिर को तौलें,
संस्कारों और परम्पराओं को
पहले सहज भाव से खोले,
देखोगे सब रिश्ते-नाते ,
हरे भरे खलिहान हो गए....
शुक्ल भ्रमर ५
http://surendrashuklabhramar.blogspot.com
कुश्वंश जी आपकी रचना बहुत ही बेहतरीन लगी
जवाब देंहटाएंसाभार
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।