एक दुबली पतली
माँ
अचानक धडधडाती हुयी
मेरे चैंबर में घुस आती है
और अश्रुपूरित आँखों से
अपना पेट दिखती है
सूखी छाती तक , बिना शर्म
भूख लगी है बेटा
मे उठकर उसे पकड़ लेता हूँ
उसका ब्लाउज नीचे कर देता हूँ
शर्म से गडकर
बिना माँ से नज़रें मिलाये उसे
सोफे पर बैठाता हूँ
घंटी बजाकर
पानी मगाता हूँ
साथ ही कुछ खाने को भी
उसके आंशू नहीं रुकते
तो में उसका हाँथ पकड़ लेता हूँ
माँ क्या तकलीफ है तुम्हे
वो तुड़ी मुड़ी बैंक की पासबुक दिखाती है
इसमें विधवा पेंसन नहीं आयी
दो दिन से भूखी हूँ
पेंशन घर नहीं ले गयी तो
बेटे बहू
न खाना ही देंगे
न इलाज़ कराएँगे
मैंने देखा पेंसन तो अभी भी नहीं आयी
माँ शायद जन्मों से भूखी-प्यासी थी
चार गिलाश पानी पी गयी
और दोनों समोसे
फुर्ती से खा गयी
मैंने पूंछा
माँ कितने बेटे है
उसने चार उँगलियाँ उठा दी
कहाँ है
काम पर गए है
नाती के साथ आयी हूँ
छोटी बहू भी आयी है
बाहर ही खड़ी है
कहती है झूठ बोलती हो
बैंक से पैसा ही नहीं लाती ये बुढ़िया
मरने के लिए जमा करेगी क्या ?
मै बाहर से उसके
नाती और बहु को बुला लेता हूँ
बहू पचास साल की होगी
नाती भी पचीस से कम नहीं
मैंने पूछा
क्यों भाई
इसे भूखा क्यों रखते हो ?
आखिर माँ है
बेकद्री क्यों करते हो ?
इलाज़ भी नहीं कराते
कैसे बेटे हो ?
नाती बोला
हम बेटे नहीं है
जो बेटे है , वो कुछ नहीं कमाते
जो कमाते है सब बम्बई में उड़ाते है
दादी की पेंसन ही सहारा थी
चार महीने से नहीं आयी
हर साल पांच सौ लगता था
प्रधान के घर
प्रधान भी क्या करे
उसे भी तो देना पड़ता है
तब साल भर आती थी
इस बार देने को नहीं थे , रुक गयी
हम क्या चोरी करें ,
कैसे फ़र्ज़ निबाहे
चार में एक मर गया
तीन बम्बई में ,
अपनी अपनी खोलियो में सो गए
हम नाती है
दो बीघा जमीन , सात बच्चे , एक विधवा बहन
प्राइवेट गाडी चलाते है
ग्रहस्ती कैसे चलायें
आपने पूंछा है तो बताओ
मैंने जेब से सौ रुपये निकले
माँ को दिए, नाती से कहा
इसे ले जाओ
बुखार की दवा दिलाओ
अबकी आना
खोलीवाले बेटों का पता लाना
हो सका तो उन्हें बताऊंगा
माँ की छाती से निचोड़ गए जो दूध
उन्हें दूध का क़र्ज़ सिखाऊंगा
माँ चली जाती है
मै सोचता हूँ
कुछ कर पाऊँगा क्या ?
खेत से घर
घर से गली
गली से पंच
पंच से पंचायत
पंचायत से तहसील
तहसील से जिला
जिले से प्रदेश
प्रदेश से देश
कहा कहा लडूंगा
और इनसे लड़ भी लिया तो
बेटे
बेटी
बहु
नाती-पोते
रिश्ते-नाते
सब लाइन में है
किस-किस को हाज़िर करूंगा
मै बगलें झांकता हुआ
कभी खुद को देखता हूँ
कभी अन्श्रुपुरित
छाती खोले माँ को
कभी मेज़ पर पड़े समाचार पत्र को
जहाँ बह रहे है टनों
घडियाली आंशू
भट्टा-पारसोली में ही नहीं
उसके नाम पर सारे देश में
किसानो के लिए
तथाकथित किसान का बेटा बनकर
मै
माँ के लिए
शायद ही कर पॉऊ कुछ
-कुश्वंश
आदरणीय कुश्वंश जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन !
बहुत मर्मस्पर्शी कविता है -
…कुछ कर पाऊंगा क्या ?
खेत से घर
घर से गली
गली से पंच
पंच से पंचायत
पंचायत से तहसील
तहसील से जिला
जिले से प्रदेश
प्रदेश से देश
कहा कहा लडूंगा
और इनसे लड़ भी लिया तो
बेटे
बेटी
बहु
नाती-पोते
रिश्ते-नाते
सब लाइन में है
किस-किस को हाज़िर करूंगा …
परिवार , समाज और व्यवस्था का सच्चा चित्रण !
आपकी अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती हैं …
हार्दिक आभार …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपके इस भाव-प्रवाह में बह गया. लगा सुबह का स्नान हो गया. आपने मेरी संवेदनाओं को जगाकर ईश्वर की सच्ची आराधना करवा दी.
जवाब देंहटाएंआपकी शब्दावली मन में जमे स्व-अर्थ निमित्त सुख को उखाड़ देने में सक्षम है .. स्नान करके परमार्थ के लिये भी कुछ करने को प्रेरित करती है आपकी रचना. आभारी हूँ इस श्रेष्ठ रचना को पढवाने के लिये.
राजेंद्र जी, प्रतुल जी सादर अभिवादन, आपका प्रोत्साहन सामयिक साहित्य को बल प्रदान करता है, देश और समाज के लिए अंश मात्र भी कुछ कर सके ये मेरी कविताये तो आप जैसे सुधी जनो का आभार मानूंगा , धन्वाद
जवाब देंहटाएंशब्दों के माध्यम से एक मार्मिक दृश्य प्रस्तुत कर दिया ...एक ऐसा सच जो हर ओर व्याप्त है ..बिना पैसे के कोई काम नहीं करना चाहता ..
जवाब देंहटाएंइतना मार्मिक चित्रण किया है कि रौंगटे खडे हो गये।
जवाब देंहटाएंमां की वेदना का मार्मिक चित्रण किया है आपने।
जवाब देंहटाएंचारों तरफ स्वार्थ का बोलबाला है। गरीबों और किसानों का तो कोई सुनने वाला नहीं।
भावुक कर देने वाली कविता।
niji star par kuchh n kar pane ki kasak hi hame kachotti hai.bhavpoorn rachna .aabhar .
जवाब देंहटाएंमां की वेदना का मार्मिक चित्रण किया है आपने.
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना को पढवाने के लिये आभार!
मां की वेदना का मार्मिक चित्रण ,.कहने के लिए कुछ नहीं निशब्द ..
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर दस्तक देने वाले सभी सुधिजनो का हार्दिक अभिनन्दन, प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंBandhu,Totally agreed with respected Rajendra Bhai,once again you have touched our hearts deeply.Hope you will produce such work in near future also.My best wishes are with you.Thanks a lot for yr valuable comments sir.
जवाब देंहटाएंregards,
dr.bhoopendras singh
rewa
बहुत मार्मिक!!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील भाव ...... यही सच है आज के समाज का ....
जवाब देंहटाएंवाह क्या शब्दों से बनी माँ की मार्मिक चित्र आंकी है..मर्म के दरिया मैं मन प्रवाह हो गया... जिंदगी की बदसूरती की मार्मिक चित्रण है
जवाब देंहटाएंबधाईयां... आप बहुत खूब लिखते हैं. कई रचानावाओं को पढ़ दिल भर आया ...
संजय
http://chaupal-ashu.blogspot.com/